हौंसलों की उड़ान
देख पंछी परिंदों को
मेरे मन जागी इच्छा
मैं भी इनकी तरह
उडूँ उन्मुक्त आकाश में
लेकिन इनके तो पंख हैं
मैं पंख कहाँ से लाऊँ
मैं हो गयी परेशान
अब कैसे भरुँ उड़ान
दिल ने मुझे समझाया
धैर्य दिला के कहा
घबराओ मत ऐसे
मैं उपाय बताता हूँ
पंख नहीं तो क्या हुआ
हौंसलों की उड़ान भरेंगे
सारा जहान घुमेंगे
नाप लेंगे सारी धरती
और सारा आकाश भी
ऊपर नभ में हीं
एक सुंदर और प्यारा
आशियाँ बनायेंगे
चाँद-तारों से सजायेंगे
राहों में
बिछड़े राही को
प्यार से उठाकर
गले से लगाकर
उसकी मंजिल के पथ में
रोशनी जलायेंगे
उसे उड़ाना सिखायेंगे
वह भी छूयेगा आसमान
हौंसलों की पर लगाके
भरेगा उड़ान
– दीपिका कुमारी दीप्ति
अच्छी कविता
बढ़िया !