आस
रखती है जिन्दा मुझे
तेरे मिलने की आस
अब जब भी आना, तो
बादल की आगोश बन आना
फिर हमारे बस में होगा
बारिश की तरह बरसना
बर्फ बन झरना
स्पर्श कर गुजर जाना
पर्वतों को
मरुस्थलों को भ्रम या
संतोष देना भी
हमारे हाथ में होंगे
सात रंगों के चित्र
बिखेर सकेंगे हर तरफ
सूरज को पीठ पर लाद
गहरी ठंडी छाव बन सकेंगे
हर तपते हृदय के लिए…!!
— रितु शर्मा
बहुत सुन्दर कविता.