कविता

छोड़ आए

सुबह की सुनहरी किरणों की आस में

मैं तनहा रातों को सिसकता छोड़ आई

 

समेट कर रखे बस कांटे अपने दामन में

फूल उनकी राहों में बिखरे छोड़ आई

 

लब हिल न सके उनसे बिछड़ते वक्त बस

उनके दिल में अपनी धड़कन छोड़ आई

 

महफ़िल में गैरो की हाल-ऐ-दिल क्या सुनाती

नाज़ था जिसपे वो शायरी का हुनर छोड़ आई

 

“कान्हा”महफूज़ रखना उन्हें दुनिया के हर गम से

पास आज जिसके मैं अपना दिल छोड़ आई ।

प्रिया

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

One thought on “छोड़ आए

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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