कहानी

कहानी : विपरीत लव जिहाद

कचरू का मोबाईल बज गया। भाईसाहब ने उसको घूर कर देखा और आंखों के इशारे से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया। भाईसाहब ने बैठक के पहले ही कह दिया था की मोबाईल स्विच आॅफ कर दो, लेकिन कचरू की समस्या यह थी की उसका बेटा अस्पताल में भर्ती था हालात अच्छे नहीं थे मजबूरी में उसे बैठक में आना पडा था।

कचरू संघ परिवार के स्कूल में पढाता था जिसके संचालक भाईसाहब पंडयाजी ने बैठक रखी थी, नहीं आने पर नौकरी जाने का खतरा भी था। मन मारकर वह आ तो गया, मोबाईल में बेटे के स्वस्थ होने की जानकारी मिलने से उसने राहत की श्वांस ली। चुपचाप जाकर बैठक में बैठ गया। भाईसाहब सभी को कठोरतापूर्वक कुछ ना कुछ नसीहत दे रहे थे, कोई विरोध का स्वर नहीं था। आचार्यों को तो धर्म रक्षा में जुटने के लिए कहा, कुछ से कहा कि अपने घरों पर केसरिया झंडे लगाएं, अपनी गाड़ियों पर केसरिया रंग में जय राम, धर्म की जय आदि स्लोगन लिखवाए।

बैठक खत्म हुए तो भाईसाहब ने कुछ आचार्यों से अलग से बात की, जिसमें से ज्यादातर आदिवासियों को ईसाई बनने से रोकने की, घर वापसी की थी। इसके लिए हवन आदि करवाने के लिए भी कहा गया। भाईसाहब ने इसके लिए बिल प्रस्तुत करने पर भुगतान का आश्वासन भी दिया। बैठक और बैठक के बाद तक किसी ने कोई प्रश्न नहीं किया। भाईसाहब कचरू से अब तक नाराज थे उन्होंने बोलेरो में बैठते हुए कहा- कल घर आना।

कचरू सहित सभी आचार्यों को क्षमता के अनुसार वेतन दिया जाता है और वेतन इतना भी नहीं है कि घर ठीक से चल सके, लेकिन छोटे-मोटे खेत होने और फसल होने से घर चल जाता है। बार-बार के भाषणों का असर कहें या धर्म की व्याख्याओं का प्रभाव कि ज्यादातर आचार्य हिन्दू धर्म के लिए काम करते हैं उनकी मानसिकता भी ऐसी ही हो गई है कि वे हिन्दू धर्म के कर्ता-धर्ता हैं। इसको बचाना उनका पुण्य कर्म है और विदेशियों के कारण धर्म अपना मूल रूप खोता जा रहा है। वे यह भी मानते हैं कि आदिवासियों का धर्म और हिन्दू धर्म एक ही है, इससे ही वे मूख्यधारा में आ सके हैं, वरना यवन, विधर्मी सब कुछ खत्म कर देंगे। अपनी संस्कृति नष्ट हो जाएगी, सभी विदेशी पाश्चात्य हो जाएंगे।

दूसरे दिन कचरू को अस्पताल जाकर बेटे के स्वास्थ्य की जानकारी लेनी ही थी, तो वह भाईसाहब के घर पहले पहुंच गया। भाईसाहब पूजा में थे इसलिए कचरू को उनके घर के बाहर ही खड़े रहना पडा। उसने देखा कि एक आचार्य वहां भाईसाहब के गमले में उगी घास उखाड़ रहे हैं। भैंस को चारा दे रहे हैं, फिर पौंछा लगा रहे हैं। कुछ देर बाद भाईसाहब बाहर आए और कचरू से बोले- जाओ सब्जी मंडी से कुछ ताजा सब्जियां ले आओ। कचरू को अस्पताल जाना था, बेटे के लिए घर से भोजन लाए थे, वो देना था, लेकिन वे बोल नहीं सके और सब्जी मंडी गए, सब्जी लाकर मेडम को दी। भाईसाहब दौरे पर निकल गए थे। कचरू कुछ देर खड़ा रहा कि मेडम सब्जी के रूपए देंगी, लेकिन वे तो गेट बंद करके जाना कहते हुए भीतर चली गईं।

कचरू मनमारकर अस्पताल चला गया कुछ देर बेटे के पास बैठा पत्नी से बातें करता रहा। उसको उम्मीद थी कि भाईसाहब इस कठिन वक्त में उसका दो माह से रूका रूपया देंगे, लेकिन यहां तो आटा गीला हो गया। कचरू ने कुछ दिनों की छुट्टी ले रखी थी। जब बेटा ठीक हो गया तो भाईसाहब का फोन आया कि बेटे को कभी कभार घर भेज दिया करे, वो भाईसाहब की बेटी को स्कूल जाते आते वक्त साथ रहे। एक तरह से बाॅडी गार्ड को काम करे। भाईसाहब ने विश्राम को अपने घर पर रहकर पढ़ने, खाने की सुविधा देने का भी आश्वासन दिया। कचरू ने सोचा कि इस बहाने विश्राम को सुविधा मिलेगी, वैसे भी उसकी काॅलेज की पढ़ाई के लिए यह ठीक भी है।

विश्राम भाईसाहब के घर रहने लगा। उसे सर्वेंट क्वाटर में एक कमरा दे दिया गया। अब वह चैकिदार, बाॅडीगार्ड, माली, नौकर सब हो गया था। सुबह उठते ही काम पर लग जाता था। उसे लगता था कि वह बेगारी कर रहा है, रोटी के बदले काम कर रहा है। वह छोडना चाहता था भाईसाहब का घर लेकिन उनकी बेटी श्रुति के कारण मन मसोस कर रह गया था। दोनों के मध्य आकर्षण था हंस-हंसकर बाते करते थे, दोनों के विचार भी मिलने लगे थे।

श्याम रंग का विश्राम और गोरी श्रुति को देखकर लगता था कि कृष्ण और राधा की जोडी है। जब विश्राम बाईक लेकर श्रुति को स्कूल छोड़ने जाता, तो शुरू में तो श्रुति कुछ दूर बैठती थी, बात भी नहीं करती थी, लेकिन कुछ ही दिनों में दूरी कम होने लगी। पढ़ाई की बात के साथ ही फिल्म, गीतों की बातें होने लगी। श्रुति की खरीददारी में भी विश्राम सहायता करने लगा। वैसे भी श्रुति की मम्मी के पास टाइम कम ही था, स्कूल की नौकरी के बाद शाम को समाज सेवा करती थी। वाहिनी के लिए महिलाओं को इकठ्ठा करना, उनको प्रदर्शन के लिए ले जाना, भारतीय संस्कृति की रक्षा, बढ़ावा देने के लिए वह काम करती थी। कभी रंगोली बनाई जाती, कभी नदी में दीप दान करते, मन्दिर में हवन करना, गायों के चारे के लिए चन्दा लेना आदि कई महत्वपूर्ण कार्य करती थी।

भाईसाहब वैसे तो सरकारी नौकरी में थे, लेकिन राष्ट्रसेवा को जरूरी मानते थे इसलिए आॅफिस जाते तो हस्ताक्षर करके निकल जाते। कभी इस गांव कभी उस गांव, उनके त्याग, मेहनत की सभी वाहवाही करते। उनके आफिस में आने वाले गरीब, वंचित उनके नहीं होने की जानकारी पाकर रोजाना निराश लौट जाते। तो विश्राम और श्रुति को अपने लिए अच्छा समय मिल जाता था। श्रुति कुछ ना कुछ बहाना करके विश्राम के कमरे आ जाती, बातें करती। जब मम्मी-पापा घर में रहते तो दोनों चेटिंग करते अपने भावों को व्यक्त करते। कई बार श्रुति विश्राम के मोबाईल का रिचार्ज करवा देती, उसने कुछ आधुनिक वस्त्र, जूते भी दिलवाए। विश्राम को बुरा लगता, लेकिन उसकी मजबूरी थी। पिताजी की नौकरी बचाये रखने के लिए यहां टिके रहना जरूरी था।

एक दिन जब वो श्रुति को स्कूल छोडने जा रहा था तो वह बोली- विश्राम आज मन नहीं है स्कूल जाने का। फिर बोली- चलो कागदी पिकअप चलते हैं। श्रुति ने अपना मूॅह कपडे से बांध लिया था गोगल्स लगा दिए थे दोनों ने बहुत समय कागदी गार्डन में गुजारा, मस्ती की। श्रुति ने कई बार विश्राम का हाथ भी पकड़ लिया। विश्राम को अच्छा लगा, पर उसे संकोच था, वह अपने भावों को इजहार नहीं कर पा रहा था। सक्रियता नहीं दिखा सका था, बहुत देर तक घूमने के बाद दोनों घर आ गए।

विश्राम कपड़े बदल कर पढ़ने बैठ ही रहा था कि उसका मोबाईल बजा। श्रुति थी, उसे बुला रही थी। जब वह श्रुति के पास गया तो वह लपक कर उसके गले लग गई, बार-बार चूमने लगी और जो होना चाहिए था, वही हुआ। दोनों के मध्य शारीरिक सम्बन्ध बन गए, जो प्यार का सबसे बडा आधार है देह का देह से मिलना भी तो प्यार का एक अंग है। अब तो दोनों में रोजाना ही सम्बन्ध बनने लग गए। श्रुति समझदार थी, इसलिए वह हमेशा विश्राम को कंडोम का उपयोग करने को कहती और करवाती भी थी।

इस बीच श्रुति की परीक्षाएं हो गईं। उसकी मम्मी उसे मामा के यहां भेजना चाहती थी, लेकिन वह कैसे जाती? उसका प्यार यहां था, उसकी परीक्षाएं बाकी थीं। लेकिन मम्मी लगातार आग्रह कर रही थी। मां ने एक बार श्रुति के मोबाईल पर आए मेसेज पढ लिए थे। वह डर गई थी। फिर घर के पिछवाडे रोजाना फैंके जाने वाले युज कंडोम को देखकर उसका मन संशकित हो गया था। श्रुति के एक आदिवासी से प्यार को वह अपने संस्कारों की हार मान रही थी। वैसे भी मां की आंखें सब जान जाती हैं, उससे बच्चों की हरकतें कहां छिपती हैं। वैसे ही मां को मां नहीं माना जाता, उसको श्रुति के बदलाव, खूशी में झूमना दिखाई दे रहा था। वैसे उसने अपने पति से इस बात की चर्चा नहीं की थी। करती भी कैसे? वे उस पर ही श्रुति की जिम्मेदारी डाले हुए थे। अब यह बातें जानते तो उसके लिए आफत हो जाती।

जब श्रुति ने मामा के यहा जाने से मना किया, तो मां ने मजबूरी में सारी बातें भाईसाहब को बता दीं। भाईसाहब सब कुछ सुनकर बहुत गुस्सा हुए। उन्होंने अपने आप को शांत किया और अब घर पर ही ज्यादातर वक्त गुजारने लगे। श्रुति के साथ समय गुजारने लगे। उनके स्वभाव की कठोरता नम्रता में बदल गई। आचार्यों से स्नेह से बात करते, उनकी छोटी-छोटी समस्याओं पर ध्यान देते, सहायता करते यह नियम सा हो गया था कि मम्मी-पापा में से एक ना एक घर पर ही रहता और श्रुति को कहीं जाना होता, तो दोनों में से एक साथ होता। श्रुति के साथ ही मम्मी सोती थी। जब विश्राम की परीक्षाएं पूरी हो गईं, तो भाईसाहब ने उससे घर जाने को कहा। कुछ दिन बाद कचरू को कमरे से सामान ले जाने के लिए कहा। अब सब कुछ सामान्य हो गया था। दोनों के मिलने के सारे रास्ते बंद हो गए थे। श्रुति को नया मोबाईल नम्बर दे दिया गया और पुराना नम्बर भाईसाहब के तीसरे मोबाईल में था।

श्रुति उदास रहने लगी उसको खुश करने के लिए पर्यटन यात्रा की गई, चारधाम की यात्रा की गई और इस बीच उसके लिए एक सुन्दर, सुशील, चरित्रवान युवक देखकर रिश्ता तय कर दिया गया। जल्द बाजी में शादी भी कर दी गई। श्रुति का पति रोज रात को शराब पीकर आता, उससे मारपीट करता, लेकिन भाईसाहब की समझाई थी कि अपने वाला तो है, कुछ दिन सहन करो सब ठीक हो जाएगा।

इधर कचरू का स्कूल खुल गया था। उसको अपने बेटे की करनी की भनक लग गई थी। वैसे भी ऐसी बातें कहा दबती हैं, फिर प्यार पर तो सबकी नजर रहती है। तो उनको पता नहीं लगने का कोई कारण नहीं था। एक दिन जब कचरू घर पर था कि पुलिस आ गई, उसे पकड़कर ले गए। थाने में उसे बताया गया कि स्कूल से जो कम्प्यूटर चोरी हुए हैं उसमें उसका हाथ है। कचरू को आश्चर्य हुआ स्कूल में कब कम्प्यूटर आए थे? उसने तो कभी कम्प्यूटर ही नहीं देखे, तो चोरी कैसे हुए? अब उसको समझ में आ गया था कि यह भाईसाहब की चाल है। वे उससे बदला ले रहे हैं।

कुछ दिनों रिमांड पर रहने पर उसे जमानत मिल गई। और कुछ ही दिनों के बाद श्रुति अपने पति को छोड़कर उसके घर में थी। पुलिस आई लेकिन श्रुति के बयान सुनकर भी पुलिस जबरन उसे ले जाने लगी, तो ढोल बज गए सारा गांव इकठ्ठा हो गया, पुलिस को जाना पडा।

आज तीन साल बाद श्रुति के दो बेटे हैं, जिनके साथ वह गांव में ही रहती है।

भारत दोसी

One thought on “कहानी : विपरीत लव जिहाद

  • कल्पना रामानी

    सुंदर भावपूर्ण कहानी सुखद अंत अच्छा लगा

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