क्या लिखूं ……
क्या लिखू क्या ना लिखूं ,
मेरी कलम ही रुक जाती |
जब से तुम बिछड़ी ,
लिखना बंद सी हो गयी |
लेखनी भी होती तो ,
तुम पर ही आ रूकती |
क्या करू मैं समझ न पाती|
मेरी समस्या को दूर ,
तुम्ही तो करती |
अब दिन रात गुजर रहा ,
तुम्हारे याद और इंतज़ार में |
कभी सोचा न था की ,
ऐसी सजा हमे भी मिलेगी |
अपना घर छोड़ तुम ,
किसी और का घर बसाएगी |
बस मैं क्या करू ,
सिसकियों के सहारे
दिने काट रही हूँ |
मैं अपने आप को ,
कैसे सम्भालू यही ,
सोच रही हूँ ……………
निवेदिता चतुर्वेदी
अच्छी कविता!
dhanybad
अच्छी कविता है जी .
dhanybad jee
कविता अच्छी है. लेकिन लिंग भेद का ध्यान रखा होता तो और अच्छी बनती.
dhanybad sriman jee, aage se dhyan me rakhungi