नवगीत : जुदा होकर
जुदा होकर कहाँ गए हो तुम
खफा होकर कहाँ गए हो तुम
जब से तुम हो गए मुझे यूँ छोड़कर
तब से तनहा हो गए बैठे हैं मुँह मोडकर
सजा मिली किस बात की
हम सो गए बस ये सोचकर
गलती है क्या हालात की
चुप हो गए आँसुओं को पोंछकर
कहाँ हो तुम कहाँ हो तुम
जुदा होकर कहाँ गए हो तुम
खफा होकर कहाँ गए हो तुम
क्यों खुश हुए तुम यादों वो भूलकर
क्यों हम जगे तेरे संग रातभर
क्यों खुश हुए तुम सपनों को तोड़कर
हम जी उठे सपनों को जोड़कर
कहाँ हो तुम कहाँ हो तुम
जुदा होकर कहाँ गए हो तुम
खफा होकर कहाँ गए हो तुम
तेरी परछाईयां
सताती हैं मुझे
मेरी तनहाईयां
पूछती हैं मुझे
जुदा होकर कहाँ गए हो तुम
खफा होकर कहाँ गए हो तुम
बहुत खूब .
अच्छा गीत !