हरे मित्र
ओ मेरे हरे मित्र वृक्ष
क्यों तुम हो उदास
लगता है फिर किसी ने
तुम्हें दर्द दिया है आज
खुद धूप में रहकर सबको
देते हो छाँव आवास
फूलों की खुशबू से
रौनक करते जमीं आकाश
खट्टे-मीठे फल देते हो
तुम ही देते हो अनाज
पक्षियों को दाना देते
पशुओं को चारा-घास
तेरी सूखी लकड़ी से माँ
खाना भी पकाती है
टेबल-कुर्सी और सभी
फर्निचर बनायी जाती है
CO2 तुम ग्रहण करके
हमें देते हो ऑक्सीजन
वातावरण शुद्ध रखते हो
मिटाकर सब प्रदूषण
अपनी गुणों से हमारा
जीवन करते हो रंगीन
इतने हैं उपकार हमपर
गिनना नहीं मुमकिन
अंतत्तोगत्वा तुझपर ही
ये पूरी दुनिया टीकी है
तेरे ही कंद मूल फल खाकर
ये पूरी दुनिया जिती है
करते हैं हम प्रण आज
तुम्हें कभी न देंगे दर्द
एक सच्चे मित्र का हरदम
हम पूरा करेंगे हर फर्ज
– दीपिका कुमारी दीप्ति
आभार सर !
अगर ब्रिक्ष नहीं तो हम भी कुछ नहीं , अगर जगह हो तो ब्रिख्श जरुर लगाने चाहिए .
वाह वाह!