चलो करे थोड़ी सी सहेर..,
इन्द्र ने की है महेर,
चलो करे थोड़ी सी सहेर..,
इस बारीश में!
ठंडी हवाओं के बीच,
पानी की बूँद में,
पेड़ के नीचे,
वो पक्षीयों के झूंड में!
देह को मलकाने वाली,
फूलों को खिलाने वाली,
सब को मिलाने वाली,
इस बारिश में!
चलो करे थोड़ी सी सहेर..,
मेंढक की टर्र-टर्र,
मयूर की टूँह-टूँह,
जिस्म की ताज़गी,
अमृत की बूँद-बूँद!
कहीं कीचड़, तो कहीं खड्डो में,
खेलते हैं हम संग बागो में,
लिए हाथो में हाथ हम कहते हैं,
चलो करे थोड़ी सी सहेर..,
इस बारिश में!
© Mayur Jasvani
04-07-2013
3:35-3:42 p.m
आपने अच्छी कविता लिखने की कोशिश की है. जारी रखिये.