राजनीति

आईआईटी, मद्रास द्वारा अम्बेडकर पेरियार ग्रुप पर से प्रतिबन्ध हटाना गलत

विगत कुछ दिनों से आईआईटी, मद्रास द्वारा अम्बेडकर पेरियार ग्रुप पर प्रतिबन्ध लगाने कि चर्चा प्रमुखता से प्रचारित हो रही थी। स्वघोषित बुद्धिजीवी एवं अपने आपको आधुनिक कहने वाला वर्ग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) पर हमला कहकर प्रचारित कर रहे थे और यह दर्शाने का प्रयास कर रहे थे कि वे मोदी जी की सरकार द्वारा हिंदुत्व के एजेंडा को फैलाये जाने के लिए इस प्रकार का प्रतिबन्ध लगाया जा रहा हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल उद्देश्य से छदम सेकुलरवादी कोसो दूर हैं एवं अपनी तुच्छ राजनीतिक महत्वकांशा को पूरा करने के लिए आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में मानसिक प्रदुषण फैलाना चाहते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि आप किसी का भी विरोध कैसी भी भाषा में करे। उसके लिए दो नियमों का पालन अनिवार्य हैं।
पहला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने वाला व्यक्ति निष्पक्ष हो दूसरा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उद्देश्य जनकल्याण हो। जब तक इन दो नियमों का पालन नहीं होता तब तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अनुचित प्रयोग अपनी झल्लाहट निकालने, असभ्य भाषा का प्रयोग करने, बहुमूल्य समय को व्यर्थ करने के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। उदहारण के लिए अब कोई व्यक्ति दूसरे के माता पिता के विषय में असभ्य भाषा में गाली गलोच करे तो उसे क्या आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहेंगे अथवा घटियापन। सभी पाठकों की राय एक ही होगी की यह तो सरासर पागलपन हैं। इसी प्रकार से जब आर्य हिन्दू जाति के महान पूर्वज श्री रामचन्द्र जी एवं श्री कृष्ण जी के विषय में असभ्य भाषा में कपोल कल्पित, घटिया मानसिकता का प्रदर्शन करने वाली बातें प्रचारित कि जाती हैं तो उसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” का आवरण में लपेट कर प्रचारित किया जाता हैं।freedon of expression
इस दोगलेपन की प्रतिरक्षा में एक पूरी लॉबी खड़ी हो जाती हैं जिसका उद्देश्य केवल देश कि एकता को तोड़ना हैं। 300 रामायण, सीता सिंग्स थे ब्लूज, वेंडी डोनिगर कि पुस्तक (Wendy Doniger’s ” The Hindus: An Alternative History”) आदि इसी श्रेणी में गिनी जाती हैं। विदेशी शक्तियों से NGO के नाम पर धन प्राप्त कर उनके राजनीतिक हितों को साधने में लगी इन ताकतों के अनेक छदम चेहरे हैं मगर कार्य एक ही हैं। राष्ट्र, धर्म और संस्कृति का विरोध जिससे महान आर्य सभ्यता का नाश हो जाये। दलितों के उद्धार का कार्य करने वाले स्वर्ण हिन्दू जैसे स्वामी दयानंद, स्वामी श्रद्धानन्द, वीर सावरकर, लाला लाजपत राय, मास्टर आत्माराम अमृतसरी आदि का नाम अम्बेडकर पेरियार समूह के मंचों से कभी क्यों नहीं लिया जाता? यह उनकी निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता हैं एवं केवल हिन्दू भगवानों को गालियां देना मानसिक खोखलापन दिखाता हैं। इसलिए आईआईटी, मद्रास द्वारा अम्बेडकर पेरियार ग्रुप पर से प्रतिबन्ध हटाना गलत हैं एवं न केवल इस समूह अपितु देश में चल रहे इस प्रकार के सभी षड्यंत्रों पर प्रतिबंध लगना चाहिये। अंत में केवल निष्पक्षता और जनकल्याण के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग हो उसी में सभी का हित हैं।

साथ में एक चित्र दिया गया है जिसमें अम्बेडकर पेरियार जैसे ग्रुप से सम्बंधित कोई व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति का प्रदर्शन हिन्दू देवी की मूर्ति को पैर से ठोकर मार कर कर रहा हैं। क्या इसे अभिव्यक्ति कहना पसंद करेंगे?
डॉ विवेक आर्य

One thought on “आईआईटी, मद्रास द्वारा अम्बेडकर पेरियार ग्रुप पर से प्रतिबन्ध हटाना गलत

  • विजय कुमार सिंघल

    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जैसा दुरूपयोग इसके द्वारा किया गया है वैसा किसी ने नहीं किया. ऐसे दुरूपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती.

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