क्षणिकाएं-2
(6) धूप का इंतजार
तुम्हें धूप दिखे
तो बता देना उसे
मेरे घर का पता
कहना,
बहुत से नहाये हुये कपड़े
सूखने को पड़े हैं
तुम्हारे इंतजार में
(7) चाहत
मैनें सिर्फ
तुम्हें चाहा
क्या तुमने कभी?
मुझे चाहा
(8) बासी लकीरें
मेरी बचकानी उम्र में ही
हाथ की जिन लकीरों को पढ़कर
पंडित बाबा ने
मेरी भयानक कुंडली बनाई थी
बड़े होते ही मैनें
उन सभी बासी पड़ी लकीरों को
उतार फेंका
खुद नई-नई और ताजा लकीरें बनाने के लिए
(9) औकात के मुताबिक
हर किसी का सपना होता हैं
कि अपना एक घर हो
कोई महल
कोई झोपड़ी
कोई फूटपात देखता हैं
अपने सपने में
औकात के मुताबिक
(10) बुजुर्ग
बुजुर्ग की आँखें
अनुभव का सागर
अमन,
भर लो गागर
— अमन चाँदपुरी
सुन्दर रचनाएँ ..
बुजुर्ग की आँखें
अनुभव का सागर
अमन,
भर लो गागर…बहुत सुन्दर !