याद …..
याद की शक्ल कभी
पहचानी नहीं होती…
किस लम्हे में
किसकी याद आये
इसका भी कोई
गणितीय फ़ॉर्मूला नहीं है…
तो फिर क्यूँ
मैं तुमसे जुड़ी रहना चाहती हूँ …
हिचकियों से,
शाम के रंग से,
हर्फों से
या कि
एकदम ही सच कहूँ तो
मन से…
मेरा मन तुमसे
इतने लम्बे अंतराल का
बंधन क्यूँ मांगता है….??
— रितु शर्मा
अच्छी कविता !