खंसनाद
‘आप’ की बदहवासी क्या कहने ।
मफ़लर और टोपी आप के गहने ।
तन पे सुसज्जित नील स्वेटर ।
यही आप सर्वत्र हैं पहने ।
झाड़ू कर खड्ग सी धारण ।
“सब चोर हैं” मंत्रोच्चारण ।
नक्सल पाकी आतंकवादी ।
ये सब तुम्हरे भक्त व् चारण ।
जहाँ भी पड़ते प्रभु पाद ।
सब विकास होता बरबाद ।
“ये सब मिले हुए हैं भैया” ।
गूँज रहा है “खंसनाद” ।
— पुनीत “नई देहलवी”
हा हा हा करारी व्यंग्य कविता !