समय का खेल !
भरे पड़े हैं
दादी माँ की संदूक में
एक, दो से लेकर
पांच निया के सिक्के ।
कभी पूछ थी
इन सिक्कों की ।
मिल जाती इससे
जरूरत की चीजें ।
आज कुछ नही मिलता !
बोझ है संदूक की
बिलकुल उपेक्षित ।
ठीक
घर के बुजुर्ग की तरह
जो बुनियाद थे कभी !!!
— मुकेश कुमार सिन्हा (गया)
बहुत सुन्दर !