ग़ज़ल
अजीब शोर हैं एहसास के मिरे दिल में,
ग़ुबार दिल का ये आँखों से निकाल देते हैं।
ज़हर पियेगा भला कौन इन हवाओं का,
मिज़ाजे शिव सा साँसों में खुद की ढाल देते हैं।
अगर यक़ीन को हो खौफ बेवफ़ाई का,
तो इस ख़याल पे मिटटी ही डाल देते हैं ।
ये दर्दो ग़म भी कहाँ ख़त्म होंगे ‘आशा’ के,
ले ज़िन्दगी तुझे बस इक सवाल देते हैं।
बढ़िया।