मुक्तक
घुल गया झूठ नफ़स में हर इक इंसा के अब
जान जोखिम में हो तो सच किसको सूझे
चौंचले हैं सब व्यंजन भारी जेबों के
पेट खाली हो तो फिर रस किसको सूझे
बाद तेरे इस तरह हमने गुज़ारी जिंदगी
याद के जेवर पहन आशा सँवारी जिंदगी
साहिलों की खफगियों से दिल डरा कुछ इस तरह
इसलिये गिरदाब में हमने उतारी जिंदगी
सहरा ए दिल से नदी कोई निकल न जाये
न मिलाओ तुम निगाहें कहीं दिल मचल न जाये
इतना न नाज दिखा इस इंतजार को तू
तिरे आने तक कहीं मौसम बदल न जाये
— आशा पाण्डेय ओझा
वाह वाह ! अच्छे मुक्तक !
बहुत खूब , वाह वाह ……