कुछ भी नहीं ।
मेरी चाहत तू है, मेरी जन्नत तू है
मेरी जाना तू है, मेरी मन्नत तू है
तेरी यादें मेरी चाहत, तेरी बातें मेरी इबादत, पर
मेरी यादों का तेरी तरफ रुख भी नहीं
तेरी चाहत मेरा नसीब, तेरे सिवा मेरा कुछ भी नहीं ।
जाना तुझे, मांगा तुझे, चाहा तुझे, पूजा तुझे
तेरी चाहत मेरी मननत, मेरी चाहत मेरी जननत
मेरे लिये तेरी यादें ही सही ।
एक दिन दहलीज पर दोनों बैठे रहे देर तक सिर झुकाये
रोते रहे आंसू बहाये, आंखे मिलायी आंखों से बातें की
मगर कहा होंठ से कुछ भी नहीं ।
एक दिन मैं बैठा था अनजान सा, तेरे बिना बेजान सा
सोचा मैंने शायद मैं पागल हूं या ये जहां पागल है
तेरी आदत सी है मुझे, तेरे बिना मरने की चाहत सी है मुझे
इस जहां में तू नहीं गर, तो इस जहां में मैं भी नहीं
मरने के बाद मुझे तेरी चाहत की आस
तेरे बिना मेरी चाहत, मेरी जिंदगी, मेरी सांस कुछ भी नहीं ।
अच्छी कविता।