अनवर जलालपुरी की शायेरी
घाघरा नदी की गोद में एक नदी बहती है जिसे तमसा नदी के नाम से जाना जाता है। इस नदी के किनारे पर जब मुग़लवंश के सबसे महान सम्राट जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का काफिला रुका तो उन्होंने इस धरती का नाम जलालपुर रखा। इस धरती की मिटटी बहुत ही उपजाऊ है। मेरा विचार है किजब अल्लामा इकबाल ने यह कहा होगा कि –
“नहीं हूँ ना उम्मीद इकबाल अपनी किश्ते वीरां से
ज़रा नम हो तो यह मिटटी बड़ी ज़रखेज़ है साकी”
तो अप्रत्यक्ष रूप से अल्लामा इकबाल के दिमाग में जलालपुर जैसी ही कोई जगह रही होगी। इस धरती के गुलदस्ते में कई रंगों और किस्मों के फूल हैं,कोई गुलाब है तो कोई गुलाउदी, कोई बेला है तो कोई गेंदा, कोई नर्गिस है तो कोई नस्तरन, कोई चमेली है तो कोई रात कि रानी वगैरह वगैरह, उन्ही फूलो में से एक फूल वोह गुलाब है जिसकी खुशबू जलालपुर कि सरहदों को चीर कर भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया में फ़ैल चुकी है और लोगो केदिल और दिमाग को महका रही है। वोह गुलाब कोई और नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायेर और मशहूर संचालक अनवर जलालपुरी हैं।
अनवर जलालपुरी अपनी शायेरी को शाब्दिक जादूगरी से आज़ाद रखकर हमेशा समाज को एक पैग़ाम देने की कोशिश करते हैं।
“तुम प्यार कि सौगात लिए घर से तो निकलो
रस्ते में तुम्हे कोई भी दुश्मन न मिलेगा”
“तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हरगिज़ न देंगे रास्ता तुमको”
हमारे समाज में नयी पीढ़ी के लिए उनकी शायेरी एक प्रकार की शिक्षा का काम करती है।
“दुश्मन को दुआ दे के यह दुनिया को बता दो
बाहर कभी आपे से समंदर नही होता”
“कुछ वस्फ़ तो होता है दिमागों में दिलो में
यूँही कोई सुकरातो सिकंदर नही होता”
अनवर जलालपुरी इंसानी रिश्तो का बेहद सम्मान करते हैं और उनकी नज़र में हर शख्स का अलग स्थान है।
“हवा तो तेज़ तो शाखों से पत्ते टूट जाते हैं
ज़रा सी देर में बरसो के रिश्ते टूट जाते हैं”
“अब मुझे कल के लिए भी गौर करना चाहिए
अब मेरा बेटा मेरे क़द के बराबर हो गया”
अनवर जलालपुरी अपनी जागती आँखों से एक ऐसे संसार का ख्वाब देखते हैं जिसमे ज़ुल्म, अत्याचार और दहशत की कोई जगह नहीं है।
“हर दम आपस का यह झगडा, मैं भी सोचूं तू भी सोच
कल क्या होगा शहर का नक्शा, मैं भी सोचूं तू भी सोच
एक खुदा के सब बन्दे हैं एक आदम की सब औलाद
तेरा मेरा खून का रिश्ता, मैं भी सोचूं तू भी सोच”
हमारा देश भारत विभिन्न धर्मो का संगम है, यहाँ पर एक दूसरे से धार्मिक और विचारात्मक विभिन्नता होने के बावजूद भी हम लोगो के
दिलो में एक दूसरेके लिए मोहब्बतों के चिराग रौशन हैं। यह हमारी गंगा जमुनी संस्कृति का नतीजा है। अनवर जलालपुरी की हमेशा येही कोशिश रहती है कि हमारी इस तहजीब को किसी कि नज़र न लगे और आपसी भाईचारे का जज्बा परवान चढ़े।
“हम काशी काबा के राही, हम क्या जाने झगडा बाबा
अपने दिल में सबकी उल्फत, अपना सबसे रिश्ता बाबा
हर इन्सां में नूरे खुदा है, सारी किताबो में लिखा है
वेद हो या इन्जीले मोक़द्दस, हो कुरान कि गीता बाबा”
आज जहाँ शायेरी से वास्तविक प्रेम विलुप्त हो गया है, वहीँ पर अनवर जलालपुरी कि शायेरी में इश्क अपनी पूरी पाकीजगी के साथ मौजूद है।
“ढूँढना गुलशन के फूलो में उसी कि शक्ल को
चाँद के आईने में उसका ही चेहरा देखना”
“चाहो तो मेरी आँखों को आइना बना लो
देखो तुम्हे ऐसा कोई दर्पन न मिलेगा”
“तू मेरे पास था या तेरी पुरानी यादे
कोई एक शेर भी तन्हा नहीं लिखा मैंने”
अनवर जलालपुरी खुद को मीरो ग़ालिब और कबीरो तुलसी का असली वारिस मानते हैं, उनका यह दावा सिर्फ दावा नही है बल्कि वोह इसके लिए मज़बूतदलील भी प्रस्तुत करते हैं।
“कबीरो तुलसी ओ रसखान मेरे अपने हैं
विरासते ज़फरो मीर जो है मेरी है”
“दरो दीवार पे सब्जे कि हुकूमत है यहाँ
होगा ग़ालिब का कभी अब तो यह घर मेरा है”
“मैंने हर अहेद की लफ्जों से बनायीं तस्वीर
कभी खुसरो कभी खय्याम कभी मीर हूँ मैं”
अनवर जलालपुरी कि कई किताबे प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनकी साहित्यिक दुनिया में बेहद प्रशंसा हुई। किताबो के नाम इस तरह से हैं,
ज़र्बे ला इलाह,जमाले मोहम्मद(स.अ.व.) खारे पानियों का सिलसिला, खुशबू कि रिश्तेदारी, जागती आँखें और रोशनाई के सफीर इत्यादि।
हाशिम रज़ा जलालपुरी
रिसर्च स्कॉलर
चोन्नम् नेशनल यूनिवर्सिटी
दक्षिण कोरिया