पिताजी प्रथम पुज्य भगवान
पिताजी प्रथम पुज्य भगवान
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मेरे सर पर उनकी साया है वे हैं मेरा आसमान।
मेरे लिए मेरे पिताजी हैं प्रथम पुज्य भगवान।।
ऊंगली पकड़ के चलना सिखाया,
जीवन का हर मतलब समझाया,
मेरे मंजिल का उसने राह बताया,
आगे बढ़ने का मुझमें जोश जगाया,
उनके आशिर्वाद से हम पा लेंगे हर मकाम।
मेरे लिए मेरे पिताजी हैं प्रथम पुज्य भगवान।।
प्यार से भी कभी नहीं डाँटा,
बचपन में भी कभी न मारा,
कैसा है सौभाग्य ये मेरा,
बाबुल रुप में भगवान मिला,
इनके पावन चरणों में ही मेरा है चारो धाम।
मेरे लिए मेरे पिताजी हैं प्रथम पुज्य भगवान।।
अपनी चाहत कभी न जताया,
धैर्य का उसने भंडार पाया,
वृक्ष बन देते शितल छाया,
स्वर्ग से सुंदर घर बनाया,
मेरी यही तमन्ना है मैं बढ़ाऊं इनकी शान।
मेरे लिए मेरे पिताजी हैं प्रथम पुज्य भगवान।।
– दीपिका कुमारी दीप्ति (पटना)
कविता अच्छी व प्रशंसनीय है। शीर्षक पर आपत्ति है। वैदिक संस्कृति में माता का स्थान प्रथम है, पिता का दूसरा और आचार्य का तीसरा। ईश्वर देवों का भी देव महादेव है।
बढ़िया कविता।