सब दिन होत न एक समान ….
उमाकांत रोज सुबह तीन बजे उठ कर नदी मे स्नान करने जाते थे और आते वक्त ईश्-वंदना करते आते थे | उनको ”गीता” तो मुहँ जबानी याद थी | पूरे गाँव के चहेते पंडित थे | गाँव मे कुछ भी धार्मिक या किसी के मरने का काम पड़ता तो उमाकांत जी को ही बुलाते थे | उनकी पत्नी भी पतिव्रता और धर्म-परायण थी | आस-पडौस की औरतो से वो घुल-मिलकर रहती थी |
उमाकांत अपने यजमानो के घरो मे नित्य पाठपूजा, हवन इत्यादि कर के अपना और अपने परिवार का पेट पालता था | गाँव मे और कोई साधन नहीं था, जिससे उमाकांत जी का गुजारा चलता | गाँव मे बच्चो के नामकरण संस्कार मे, घर की प्रतिष्ठा मे, जलवा पूजन आदि सब मे उमाकांत पंडित को ही बुलाया जाता था | यही काम उनके पिता का, उमाकांत का भी यही काम और अब अपने तीन बेटो को भी इसी काम में लगाना चाहते थे |
तीन बेटो में गोपाल सबसे बड़ा था | पर पिता के काम में उसको जरा भी रूचि नहीं थी | वो पढ़-लिख कर कुछ बनना चाहता था | दो बेटे किशोर और निशिकांत पिता के साथ काम पर जाते थे | उमाकांत अपने काम में इतने पारंगत थे कि बाहर गाँव से बुलावा आता था | इस बार दुर्गा पूजा के अवसर पर उमाकांत को उनके एक यजमान ने कलकता आने का न्यौता दिया | सात दिन तक उमाकांत को दुर्गा सप्तसती का पाठ करना था | पत्नी ने सुझाव दिया कि एक बेटे को साथ लेकर जाओ ;आपको काफी मदद मिलेगी | उमाकांत ने तीसरे बेटे को चलने को कहा| पर दुसरे बेटे ने कहा मुझे भी चलना है |
उमाकांत ने दोनों बेटो को साथ ले लिया और पहुँच गये कलकता,यजमान ने देखा इस बार पंडित जी के साथ बेटे भी आये है | तो उन दोनों को लक्ष्मी मंत्र करने को बोल दिया जिससे उनके ऊपर लक्ष्मी की खूब कृपा हो जाए | उमाकांत ने अपने दोनों बेटो से पूछा कि क्या तुम ये मंत्र कर पाओगे ? दोनों बेटो ने हां कहा|
आज सब तैयारी हो गयी, चौक गया के गोबर से शुद्ध कर दिया, मंडप सजा दिया और उमाकांत पाठ करने बैठ गया | किशोर और निशिकांत भी मंत्रोच्चार के लिए बैठ गये | एक दिन तो ऐसे ही निकल गया दूसरे दिन उन्होंने देखा किशोर को तो पूरा मंत्र भी नहीं आता है | किसी अनिष्ट की आशंका से वे घबरा गये | उन दोनों बेटो को उन्होंने मंत्र-जाप करने से रोक दिया | सोचा मै खुद ही करूँगा | इनसे करवा नहीं सकता | गलत मन्त्र पढने से कितना अनिष्ट होगा| उमाकांत सात दिन तक मंत्र-जाप करने के बाद अपने घर आ गया |
यजमान ने बहुत सारा सोना, चांदी, रुपया और कपडे दिए | पत्नी ने कहा ”देखो बच्चो को साथ लेकर गये तो कितना धन दिया है, यजमान ने इनके काम से खुश होकर |” पत्नी का इतना कहते ही उमाकांत भड़क गये| ”कुछ नहीं किया तुम्हारे बेटों ने, मंत्र पूरा पढ़ना तक तो इनको आता नहीं| मेरा तो नाम खराब करेंगे तुम्हारे ये बेटे| |”
समय बीतता रहा उमाकांत जी का बड़े बेटे गोपाल पढ़-लिख कर बहुत बड़ी कंपनी मे मैनेजर की नौकरी लग गया | थोड़े ही सालो में उसने पुराने घर को तुड़वाकर नया घर बनवा लिया एक दिन उमाकांत की पत्नी ने कहा| ”अब गोपाल की शादी के लिए लड़की देखना शुरू कर दो | घर मे बहू आयेगी तो मेरा काम भी कुछ कम होगा |” उमाकांत जी को भी पत्नी की बात जँच गयी |
कुछ ही समय बाद गोपाल की शादी एक पढ़ी-लिखी लड़की से कर दी | किशोर और निशिकांत ना तो पढ़ सके और ना ही पंडिताई ही पूरी सीख पाए उनकी कमाई बहुत कम थी | पर उमाकांत ने सोचा घर तो इनका भी बसाना पड़ेगा | पास ही के गाँव के पंडित ”रामकिशन’ की दोनों बेटियो से अपने दोनों बेटो की शादी करा दी थी | घर मे तीन बहूओ को देख कर सास बहुत खुश हुई पर उसकी ये ख़ुशी थोड़े ही दिनों की रही | उमाकांत जी की पत्नी को एक दिन अचानक दिल का दौरा पड़ा और कुछ दिनों के इलाज के बाद चल बसी |
पत्नी के चले जाने से उमाकांत जी की तो दुनिया ही सूनी हो गयी | काम मे भी मन नहीं लगता था | इसी दौरान गोपाल अपने परिवार को लेकर विदेश चला गया | कंपनी ने उसे विदेश मे अपनी नई कंपनी खोलने का जिम्मा दे दिया | किशोर और निशिकांत जैसे-तैसे कर के अपनी गृहस्थी की गाड़ी चला रहे थे | उमाकांत जी ने सोचा वो यहाँ नहीं रहेंगे बेटों पर बोझ बन कर | उन्होंने एक घर पंजाब मे खरीदा था वो वहां रहने को चले गये |
गोपाल आराम की जिदंगी बसर कर रहा था और किशोर और निशिकांत बदतर जिन्दगी जी रहे थे | पिता से कुछ छिपा नहीं था, पर वो गोपाल को कुछ कहना नहीं चाहते थे | आखिरकार उमाकांत जी गोपाल के पास विदेश गये | उसको दोनों छोटे भाइयो की हालत के बारे मे बताया,और उनकी मदद के लिए कहा | पहले तो वो कुछ नहीं बोला फिर थोड़ी देर सोच कर बोला कि ”मै तो करना चाहता हूँ पर मेरी पत्नी नहीं चाहती |” सुनकर उमाकांत जी आवाक रह गये | कभी भी किसी के भी सब दिन एक समान नहीं रहते, ये कहा और तो कुछ कहना-सूनना अब बाकी नहीं रहा और कुछ दिनों बाद उमाकांत जी वापस अपने घर लौट आये |
अपने छोटे बेटो की मदद के लिए उन्होंने अपना पंजाब वाला घर बहुत बड़ी रकम में बेच दिया और किशोर और निशिकांत को तैयार वस्त्रों का शोरुम खुलवा दिया | और सब आराम से रहने लगे| कहते है ना समय बदलते कितनी देर लगती है, गोपाल कंपनी के काम से कहीं जा रहा था | उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया और उसका एक पैर कट गया | महीनों तक अस्पताल मे इलाज चला | कम्पनी की नौकरी छोडनी पड़ी | अब क्या करे उसकी पत्नी बच्चे सब दुखी हुए | उमाकांत जी ने वहां जाकर उनको दिलासा दी कि जब तक मैं जिन्दा हूँ मेरे किसी भी बेटे को कोई भी तकलीफ़ नहीं होने दूंगा | सब वापस मेरे साथ अपने देश चलो | गोपाल और उसकी पत्नी उमाकांत जी से नजरे नहीं मिला पा रहे थे | वो अपने किये पर शर्मिंदा थे | उन्होंने पिता जी के कहने से भी अपने छोटे भाईयो की कोई मदद नहीं की, और अब खुद को ही पिताजी की मदद लेनी पड रही है | दूर किसी कोने से पिता जी की आवाज सुनाई दे रही थी कि ‘ कहा था कि किसी के भी सब दिन एक समान नहीं होते |
शान्ति पुरोहित
bahot sundar aur prernadaayak kahaani shanti ji.. sabak milta hai is kahani se.. likhti rahiye..
आप मेरी पोस्ट पर आयी , लिखना सार्थक हुआ प्रीति दक्ष
बहुत अच्छी कहानी !
आभार आदरणीय विजय कुमार भाई जी