कविता

इल्जाम

जिनकी खातिर खुद को, मिटा लिया हमने,
हमारी खुद्दारी पर क्यों ,वो इल्जाम लगाते हैं!
खबाबों को दफ़नाकर ,वो मेरे,
दिल अपना चीर के दिखाते हैं !
क्या नहीं जानते हैं वो कि,
मुर्दों के एहसास भी मर जाते हैं!
मौत तो सच है,जीवन का,
आने वाले ये जहाँन, छोड जाते हैं!
मौत से डर नहीं हमें देखो,
उनकी नफ़रत से ही ,बेमौत मर जाते हैं!
जीते जी कद्र नहीं की जिसने,
क्यों बाद मरने के वो, दिया जलाते हैं!
क्या नहीं जानते हैं वो”आशा”
जिस्म के साथ दिल भी जल जाते हैं!
जिनकी खातिर खुद को, मिटा लिया हमने,
हमारी खुद्दारी पर क्यों ,वो इल्जाम लगाते हैं!

— राधा श्रोत्रिय​ “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “इल्जाम

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर !

  • प्रीति दक्ष

    wahh bahut khoob ..

Comments are closed.