इल्जाम
जिनकी खातिर खुद को, मिटा लिया हमने,
हमारी खुद्दारी पर क्यों ,वो इल्जाम लगाते हैं!
खबाबों को दफ़नाकर ,वो मेरे,
दिल अपना चीर के दिखाते हैं !
क्या नहीं जानते हैं वो कि,
मुर्दों के एहसास भी मर जाते हैं!
मौत तो सच है,जीवन का,
आने वाले ये जहाँन, छोड जाते हैं!
मौत से डर नहीं हमें देखो,
उनकी नफ़रत से ही ,बेमौत मर जाते हैं!
जीते जी कद्र नहीं की जिसने,
क्यों बाद मरने के वो, दिया जलाते हैं!
क्या नहीं जानते हैं वो”आशा”
जिस्म के साथ दिल भी जल जाते हैं!
जिनकी खातिर खुद को, मिटा लिया हमने,
हमारी खुद्दारी पर क्यों ,वो इल्जाम लगाते हैं!
— राधा श्रोत्रिय “आशा”
बहुत सुंदर !
wahh bahut khoob ..