योग एवं मोदी योग
योग भारत की आदि-परम्परा है, लोकजीवन का व्यवहार है, जीवन दर्शन है | जब हम भारतीय की बात करते हैं तो इसका मूल अर्थ होता है कि समस्त धरती की, प्राणि-जगत की, मानव जगत व मानव इतिहास की | क्योंकि प्राणी, फिर मानव, फिर विकास, शिक्षा व ज्ञान का प्रकाश भारत में ही उत्पन्न, विक्सित व उन्नत हुआ एवं पुनः पुनः सारे विश्व में फैला | आदि योगी शिव को माना जाता है |
योग को व्यक्तिगत स्वास्थ्य-शुचिता का प्रतीक कृतित्व माना जाता है | तत्पश्चात किसी सक्षम गुरु के सान्निध्य में किया जाने लगा | फिर योग-संस्थाएं खुली एवं योग संस्थागत हुआ | परन्तु योग सदैव व्यक्ति के स्वास्थ्य, शुचिता, संस्कारिता का प्रतीक ही रहा | योग की दो मूल परिभायें — योग दर्शन में—“योगश्चित्तवृत्तिनिरोध .” एवं गीता में श्रीकृष्ण कथित..” योगः कर्मसु कौशलम “…मूलतः मानव के शारीरिक व मानसिक उत्थान का हेतु ही है |
अध्यात्मिक रूप में योग का मूल अर्थ आत्मा-परमात्मा का मिलन है | परन्तु तात्विक रूप में तो आत्मा-परमात्मा का वियोग कभी होता ही नहीं है क्योंकि दोनों एक ही हैं – अहंब्रह्मास्म, सोsहं, तत्वमसि, सर्वखल्विद्म्ब्रह्म…ब्रह्म सूत्र के अनुसार | तो फिर योग कैसा ? वस्तुतः स्वयं को सांसारिक भाव में भूले हुआ आत्मतत्व द्वारा इस मूल तत्व-योग की पुनः स्मृति हेतु ही इस योग-क्रियाओं का आलंबन लेता है | स्वयं के परमात्म रूप के ज्ञान हेतु |
मानव के शारीरिक व मानसिक एवं आत्मिक उत्थान का हेतु ही मनुष्य के सकर्मों-सुकर्मों के रूप में वृहद् रूप में मानवता व मानव समाज के समन्वय, सामंजस्य, समनुरूपता, सुहृदयता का हेतु बनता है |
यही योग अपने मूल भाव को और वृहद् रूप देता हुआ आज एक नवीन भाव में उदित हुआ है, मोदी-योग बनकर | अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस २१जून २०१५ ई. पर समस्त विश्व में एक साथ इस दिवस को मनाये जाने से, योग मानव के व्यक्तिगत स्वास्थ्य –सुचिता एवं आत्मिक रूप से आगे बढकर दुनिया को एक दूसरे के समीप लाने का हेतु बनकर उभरा है | देशों, सभ्यताओं, संस्कृतियों, धर्मों में समन्वयता व सामंजस्यता के योगक्षेम का हेतु बनकर |
—- ड़ा श्याम गुप्त
अच्छा लेख !
धन्यवाद विजय जी