लघुकथा

मोह

? क्यों बेच रही हो ? कबाड़ी को मेरे रबड़ , शार्पनर और यह बैटमैन वाले कार्ड्स पता हैं कितनी मुश्किल से मिले थे …और यह मेरे कॉमिक्स हाय यह स्टोरी बुक्स भी रस्किन बांड का पूरा कलेक्शन इकठ्ठा करने में मैंने कितनी बार दोस्तों के साथ बाहर बंद टिक्की मिस की ,और यह मेरी सारी खिलौना कार रखो न इनसबको वापिस उसी दादी वाले लोहे के बॉक्स में .”
बेटे की सब चीजे वापिस सहेजते हुए सोचने लगी मैं …….कि क्या मैं अपनेसामान को फेंक पाई हूँ वोह टूटा हुआ फूलदान वोह चूड़ियाँ जिन्हें बरसो से नही पहना , शादी वाले सूट , सहेलियों के दिए तोहफे . अपने हाथ से कढ़ाई किये पर अब पुराने हो चुके मेजपोश
पर सामने से हँसते हुए कहा “अच्छा बाबा रख देती हूँ सारा सामान .जब तुम्हारे बच्चे होंगे न और तुम उनको कुछ ला कर देने से मना करोगे तो तब उनको दीखाऊंगी कि कितना शैतान था तुम्हारा पापा ..अब तो खुश ना .”..
“जा कबाड़ी को बोल कल आना .पापा की अलमारी कल खोलेंगे ” —

नीलिमा शर्मा (निविया)

नाम _नीलिमा शर्मा ( निविया ) जन्म - २ ६ सितम्बर शिक्षा _परास्नातक अर्थशास्त्र बी एड - देहरादून /दिल्ली निवास ,सी -2 जनकपुरी - , नयी दिल्ली 110058 प्रकाशित साँझा काव्य संग्रह - एक साँस मेरी , कस्तूरी , पग्दंदियाँ , शब्दों की चहल कदमी गुलमोहर , शुभमस्तु , धरती अपनी अपनी , आसमा अपना अपना , सपने अपने अपने , तुहिन , माँ की पुकार, कई वेब / प्रिंट पत्र पत्रिकाओ में कविताये / कहानिया प्रकाशित, 'मुट्ठी भर अक्षर' का सह संपादन

One thought on “मोह

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लघु कथा अच्छी लगी .

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