ग़ज़ल
जब कोई अपना नहीं ज़माने में।
क्या रक्खा है दिल लगाने में..
रिश्ते बनते हैं बिगड़ जाते हैं।
ऐसा होता है क्यूं ज़माने में।।
बातें नज़रों से किया करते हैं।
पर डरते हैं वो जताने में।।
अब न किसी से दिल लगायेंगे।
हैं मतलबी यार सब ज़माने में.
प्यार वैसे तो सभी करते हैं.
पर दबाते हैं ”अरुण ” निभाने में.
— अरुण निषाद
वाह! बहुत सुंदर गज़ल
बहुत -2धन्यवाद मैम.आपके इस स्नेह और आशीष के लिये..प्रणाम
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल !
सादर प्रणाम सर जी….धन्यवाद