कविता

उत्सव …

मैं अपने जीवन का उत्सव ,

किस रूप में मनाउ,

जब से तुम दूर गयी मेरे से ,

मेरी जिंदगी बेगानी सी लगती है,

मैं अब इस कदर तन्हा हो गयी ,

कि , ख़ुशी मिलने पर भी ,

ख़ुशी का इजहार न कर पाउ,

तुम्हारी वो प्यार अनोखी थी ,

जो प्यार हमे दिया करती थी ,

तेरे ही विरह में काट रही हैं ,

ये मेरी नाजुक सी जिंदगी ,

अब तो तुम मेरी भावनाओ को समझो ,

बहुत दूर रह ली हमसे ,

अब पास आ भी जाओ |

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

4 thoughts on “उत्सव …

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      dhanybad jee

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      dhanybad

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