कविता

कशिश

लाख कोशिश की उन्हें,
भूल जायें!
पर चाहकर भी,
उन्हें न भूल पाये…
न जाने कैसी,कशिश है उनमें,
जितना भूलना चाहा,
वो उतने ही याद आये!
बडा जिद्दी है ये दिल​,
दर्द जुदाई का भी ,
न सह पाये!
जब दरकता है,कुछ दिल में,
टीस सी उठ आती है!
बहुत कोशिश की,
दिल को मनायें!
जो नसीब में नहीं,
उसे कैसे हम पाये!
आँसू भी साथ, न दे पाये,
लगता है समझदार हो गये!
बहना नहीं चाहते उसके लिये,
जो हमें इतना सताये!
बदलना सीख गये ,
वक़्त के साथ ये भी,
आँखों में ही, ठहर गये!
प्यार हो आया इनसे,
हमसे समझदार ये निकले ,
कीमत अपनी पहचान गये!
लाख कोशिश की उन्हें,
भूल जायें!
पर चाहकर भी, उन्हें न भूल पाये…

— राधा श्रोत्रिय ​”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"