कशिश
लाख कोशिश की उन्हें,
भूल जायें!
पर चाहकर भी,
उन्हें न भूल पाये…
न जाने कैसी,कशिश है उनमें,
जितना भूलना चाहा,
वो उतने ही याद आये!
बडा जिद्दी है ये दिल,
दर्द जुदाई का भी ,
न सह पाये!
जब दरकता है,कुछ दिल में,
टीस सी उठ आती है!
बहुत कोशिश की,
दिल को मनायें!
जो नसीब में नहीं,
उसे कैसे हम पाये!
आँसू भी साथ, न दे पाये,
लगता है समझदार हो गये!
बहना नहीं चाहते उसके लिये,
जो हमें इतना सताये!
बदलना सीख गये ,
वक़्त के साथ ये भी,
आँखों में ही, ठहर गये!
प्यार हो आया इनसे,
हमसे समझदार ये निकले ,
कीमत अपनी पहचान गये!
लाख कोशिश की उन्हें,
भूल जायें!
पर चाहकर भी, उन्हें न भूल पाये…
— राधा श्रोत्रिय ”आशा”