तन्हाई
ट्रक लेकर आसाम से लौटा गुरदित्ता हैरान था | हर बार उसकी बीबी उसको मिलकर हिरनी से उतावली कुलाचे भरउठती थी पर इस बार एक शांत झील सी लग रही हैं |कल रात भी बिस्तर पर एक शांत भाव से साथ दिया |ना इतने दिन बाद मिलने की उत्सुकता नजर आई न उलाहने न फरमाइशे | ऐसा क्या हो गया सोचते सोचते उसकी आँख लग गयी \ स्वप्न में उसे होटल में किये प्रेमालाप ही नजर आये || नींद टूट’ते ही उसने खुद को पसीने में भीगा पाया | लम्बे समय तक घर से बाहर रहने पर उसने तो अपने को खुश रखने के साधन बाहर पा लिए थे पर कही परमजीत भी तो ?? सोचकर उसका दिमाग गुस्से से उबलने लगा | उसने बंद दरवाज़े को जोर से लात मारी और सामने पम्मी अरदास कर रही थी
” सच्चे बादशाह , मेरी तपस्या मेरे पाठ सारे सफल हुए , मेरा सरताज ठीक ठाक घर आया अब उसका कोई काम यही हो जाए तो मैं हर अमास्या / पूरनमासी को सेवा करूंगी और चालिया भी | | भरी कदमो से आँगन में लौट’ता
गुरदित्ता सोच रहा था तन्हाई किसकी भयावह थी उसकी या इसकी
नीलिमा शर्मा