कविता

मेरा सुहाग

मेरे सुहाग की लाली
समर्पित है
उन नौजवानों को
जिनकी हर सुबह
अपने सीने पर
गोली खाने की
कवायद के साथ
शुरू होती है—

मेरी सतरंगी चूड़ीयाँ
लहराना चाहती है
उन वीर नौजवानों के लिए
संगीत बनकर
जिनके कान
बंदूक की खट-खट
सुनने की आदी हो चुकी है—

मैं अपनी यह चुनरिया
बिछा देना चाहती हूँ
उनके बिस्तर पर
जो हमारे देश की खातिर
हर रोज
रतजगा करते हैं
और हम
चैन की नींद सोते हैं —

—-सीमा सहरा—-

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

One thought on “मेरा सुहाग

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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