मेरा नाता
जिधर देखती हूँ,
गम की परछाइयाँ है|
ना मुहब्बत की डगर,
ना प्यार की खाइयाँ है |
दुःख को ही बना लिया है,
हमने अपना|
खुशी तो लगती है अब कोई,
भयानक सपना|
दुःख से ही है ,
अब मेरा नाता |
खुशी के बदले,
गम ही है भाता |
दुखी मिलता है,
जब कोई अदना |
रिश्ता है कोई ,
लगता है अपना |
गम को कहो,
कैसे छोड़ दूँ|
किस्मत को ,
भला कैसे मोड़ दूँ|
किस्मत व गम,
जब दोनों ही है पर्याय|
तो फिर क्यों करूँ,
मैं हाय -हाय|
सुख ने तो कुछ ही पल,
पकड़ा था हाथ|
गम ही ने तो निभाया है,
जीवन भर साथ |
+++सविता मिश्रा +++