~~लड़कियां जन्म के पहले से ही हारी हैं~~
क्या कहें!
कैसी भारत में आई त्रासदी हैं
लडकियों को नहीं कोई आजादी है
लड़कियां जन्म के पहले से ही हारी हैं
गर्भ में ही मार दी जाती क्या बेचारी हैं |
जैसे-जैसे बड़ी होती जाती हैं
बोझ कह धरती का सताई जाती हैं
चाहे कितनी भी खुशियाँ बिखेरे
रहती खुद सदा गम के ही अँधेरे
किसी भी चेहरे पर लाती ओज हैं
ईश्वर की अप्रितम सुंदर खोज हैं |
बिना कुछ सोचे समझे लड़कियां ही
हमेशा से ही घर-बाहर सताई जाती हैं
अपने घर में तो होता अपमान ही बस
दूजे घर की बेटियां तो जलाई जाती हैं|
कुछ बड़ी हुई तो घातक नजरें
लफंगो की सरेआम टिकने लगती है|
सुनसान देख नोंचने-खसोंटने-लपकने
ताक में सदैव ही नजरें गड़ी रहती है|
बड़ी पीड़ा है दारुण क्या-क्या सुनायें हम
बहरी गूंगी सरकार को क्या-क्या बतायें हम|
उठ खड़ा हो कोई नवजवान
गलती से भी मदद को कभी यदि
जाता है मारा वह इन आतंकियों से ही
फिर उठ खड़ा ना होता कोई कभी भी|
ना जाने कब वह दिन आएगा
जब लड़कियां भी चैन से जीने लगेंगी
मस्त उन्मुक्त आंगन में फुदकती
आजादी की सांस आसमान में लेती फिरेंगी|
लड़कियों की भी किलकारी गुजेंगी कब हर घर
बेफिक्र चारदीवारी के बीच में वह भी डोलेंगी |
गला घोटने वाले हाथ ना जाने कब
खुश हो प्यार से गले उसे लगायेंगे
लड़कियों को भी अपनी प्यारी बिटिया
स्नेह से ना जानें कब वह कह बुलायेंगे|
थोड़े से तो लोग सुधर गए है
देखते हुए बदलते समय को
जो थोड़े और बचे है अकडू
ना जाने कब वह सुधर पायेंगे|
दिखावे में पूजनीय है नारी न कह
सच में सम्मान से कब बुलाएगें
पूजा छोड़ कन्या को कह देवी
उसका सम्मान वह उसे कब दिलायेंगे|
फिर भी आशा यही है हमारी
वह दिन भी बहुत जल्दी आएगा
जब लड़कियों के जन्म पर भी हर घर ही
बन्दूक-पटाखे खूब जोर-शोर से चलवायेगा|
यूँ हर चौराहें पर हमें नहीं कभी यातनायें दी जायेंगी
लफंगों द्वारा कभी भी नहीं फब्बित्तियाँ कसी जायेंगीं|
.विश्वास हैं घना
त्रासदी भारत की ये जल्द दूर हो जायेंगी
लड़कियां भी आँगन में खिलखिलायेंगी।। …सविता मिश्रा
अच्छी कविता बहिन जी !