नारी को मत समझो अबला
नारी को मत समझो अबला ,
नारी सदा रही हैं सबला ,
क्यों पड़े हो इसके पीछे ,
आपने को सम्भालो जरा ,
नित्य नए -नए करते हो तांडव ,
इस तांडव से बच नही पाओगे ,
अरे ये वही नारी हैं ,
जिसके कारण लंका का विनाश हुआ ,
उस सीता माँ का रूप हैं नारी ,
उस द्रोपती को याद करो ,
जिसके कारण कौरवो का नाश हुआ ,
उस दुर्गा माँ का धयान करो ,
जिनके हुंकार मात्र से धूम्रलोचन का नाश हुआ ,
अरे झाँसी और झलकारी को भूल गए ,
जिसने फिरंगियों के छक्के छुड़ा दिए ,
अब भी तुम कुछ चिंतन करो ,
क्या -क्या रूप हैं नारी का ,
तांडव करने वालो के लिए ,
विकराल काली की रूप हैं नारी ,
और सम्मान करने वालो के लिए ,
आँचल में सदा बहती ममता ,
वात्सल्य की धरा है नारी |
निवेदिता चतुर्वेदी
बढ़िया अतुकान्त कविता , भाव और शब्द मे थोडा निखार लाना बाकी है /
बढ़िया. पर अधिकतर लोग नारी को ‘अबला’ नहीं ‘बला’ समझते हैं.
धन्यबाद