कवितापद्य साहित्य

नारी को मत समझो अबला

नारी को मत समझो अबला ,

नारी सदा रही हैं सबला ,

क्यों पड़े हो इसके पीछे ,

आपने को सम्भालो जरा ,

नित्य नए -नए करते हो तांडव ,

इस तांडव से बच नही पाओगे ,

अरे ये वही नारी हैं ,

जिसके कारण लंका का विनाश हुआ ,

उस सीता माँ का रूप हैं नारी ,

उस द्रोपती को याद करो ,

जिसके कारण कौरवो का नाश हुआ ,

उस दुर्गा माँ का धयान करो ,

जिनके हुंकार मात्र से धूम्रलोचन का नाश हुआ ,

अरे झाँसी और झलकारी को भूल गए ,

जिसने फिरंगियों के छक्के छुड़ा दिए ,

अब भी तुम कुछ चिंतन करो ,

क्या -क्या रूप हैं नारी का ,

तांडव करने वालो के लिए ,

विकराल काली की रूप हैं नारी ,

और सम्मान करने वालो के लिए ,

आँचल में सदा बहती ममता ,

वात्सल्य की धरा है नारी |

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

3 thoughts on “नारी को मत समझो अबला

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    बढ़िया अतुकान्त कविता , भाव और शब्द मे थोडा निखार लाना बाकी है /

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया. पर अधिकतर लोग नारी को ‘अबला’ नहीं ‘बला’ समझते हैं.

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      धन्यबाद

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