बादल
काले बादल नभ में गरजते ,
रिमझिम -रिमझिम बरसते बादल ,
इस तप्त धरती को ,
शीतलता प्रदान करते बादल ,
इन बूंदा बूंदी फुहारो में ,
बच्चे नहाते आँगन में ,
शोर मचाकर , धूम मचाकर ,
मस्ती करते आँगन में ,
हाथ जोड़ कर विनती करते ,
बार -बार तू आना सावन में ,
तेरा आना अच्छा लगता ,
जैसे बागियों में फूलों का खिलना ,
जब तू आता मन हर्षाता ,
तन – मन भी बेशुध हो जाता ,
खेत खलिहान में हरियाली लाता,
सबके मन को सदा लुभाता|
निवेदिता चतुर्वेदी
अच्छी कविता !
धन्यवाद सर!!