मेरे सपने …
काँटों भरी राहों पर फूल बिछाते चलूँ |
अपने दुर्गम मार्ग को सुलभ बनाते चलूँ |
अपने वाणी में मधुरस घोलते चलूँ |
ये हैं मेरे सपने |
अपने कर्तव्य से कभी विमुख न रहूँ |
सदा कर्तव्यनिष्ठ मैं बनी रहूँ |
कभी किसी का दिल ना दुखाऊँ |
ये हैं मेरे सपने |
सुख -दुःख में सबका साथ दूँ |
पराये को भी अपना बना लूँ |
दूसरे के दुःख को दूर करते चलूँ |
ये हैं मेरे सपने |
फूलों की भाँति बगिया सजाते चलूँ |
कोयल जैसी डालों पर गाते चलूँ |
पेड़ की डालियाँ जैसे सबको गले लगते चलूँ |
ये हैं मेरे सपने |
कभी भूल कर भी मेरे से भूल न हो |
सदा इंसानियत की राह पर चलते रहूँ |
सबको इसी राह पर चलने को बताते रहूँ |
ये हैं मेरे सपने |
— निवेदिता चतुर्वेदी
बढ़िया !
धन्यवाद सर
sundar
शुक्रिया अरुण जी।