डिजिटल इण्डिया और काबिल बेटियां
जुलाई महीने का पहला सप्ताह सरकारी योजनाओं के ऐलान के लिहाज से खासा अहम साबित हुआ है। खास कर टेक्नॉलजी के क्षेत्र में हुई घोषणाएं तो ऐसी हैं कि अगर इन्हें ढंग से अमल में लाया गया तो ये हर नागरिक की जिंदगी बदलने का माद्दा रखती हैं। पहली जुलाई यानी बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की धूमधाम से शुरुआत की। इसी दिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किसानों के लिए राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मंडी बनाए जाने के फैसले पर मुहर लगा दी।
इतना ही नहीं, सरकार ने मॉनसून पर किसानों की निर्भरता को कम करने के मकसद से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना भी घोषित की जिसका मकसद हर गांव तक सिंचाई की सुविधाएं पहुंचाना है। अगले ही दिन यानी गुरुवार को कैबिनेट ने स्किल डिवेलपमेंट और आन्ट्रप्रनर्शिप पर पहली समेकित राष्ट्रीय नीति 2015 को मंजूरी दे दी। वैसे जोर सबसे ज्यादा डिजिटल इंडिया पर ही रहा। इसकी अहमियत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार की इस मुहिम में उद्योग जगत के सभी दिग्गज कंधे से कंधा मिलाए खड़े नजर आए।
इन उद्योगपतियों ने इस कार्यक्रम की महज जुबानी तारीफ नहीं की बल्कि इसमें अपना पैसा डालने का भी संकल्प जताया। करीब 4.5 लाख करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा वहीं हो गई। हालांकि असल सवाल निवेश की घोषणा का नहीं बल्कि वास्तविक निवेश का होता है, मगर फिर भी शुरुआती संकेत के रूप में इन घोषणाओं की अहमियत से इनकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, डिजिटल इंडिया का यह कार्यक्रम है ही इतना खास कि इसकी अनदेखी कोई नहीं कर सकता। इसका एक मकसद 2020 तक ऐसी स्थिति तैयार करना है कि टेक्नॉलजी और इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़ा आयात बंद हो जाए। इसके अलावा 10 करोड़ नए जॉब्स क्रिएट करना भी इसका एक प्रमुख उद्देश्य बताया गया है।
अगर गवर्नेंस और सर्विसेज की बात करें तब तो इसके नाटकीय फायदे नजर आते हैं। इस कार्यक्रम के जरिए करप्शन में कमी आ सकती है, सर्विस डिलिवरी आसान हो सकती है, ई-कॉमर्स को बढ़ावा दिया जा सकता है, शासन को ज्यादा सहभागितापूर्ण बनाया जा सकता है और भी न जाने क्या-क्या किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बात है इन्हें अमली जामा पहनाने की। और जब बात अमल की आती है तभी हमारी टक्कर इस तथ्य से होती है कि अपना देश आज भी फिक्स्ड लाइन कनेक्टिविटी के मामले में दुनिया में 125 वें नंबर पर और वायरलेस कनेक्टिविटी के मामले में 113 वें नंबर पर है। 2011 में शुरू किया गया नैशनल ऑप्टिक फायबर नेटवर्क बनाने का काम भी मंथर गति से बढ़ते हुए 40 फीसदी तक ही पहुंचा है। लेकिन इस दलील में भी दम है कि अगर अतीत में हमारी चाल सुस्त रही है तो इसका मतलब यह नहीं है कि भविष्य में हम तेज नहीं चल सकते। सो उम्मीद की जानी चाहिए कि नई सरकार अमल के मोर्चे पर भी हालात को बेहतर बनाएगी।
मेरे ख्याल से दूसरी प्रमुख खबर है भारत की काबिल बेटियों की – देश की इस सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से आयोजित की गई 2014 की सिविल सेवा परीक्षा के अंतिम परिणाम घोषित कर दिए गए हैं, जिसमें इरा सिंघल को शीर्ष स्थान हासिल हुआ है।
दिल्ली की इरा सिंघल ने पहला, केरल की रेणु राज ने दूसरा और दिल्ली की ही निधि गुप्ता ने तीसरा स्थान हासिल किया है। इरा ने बताया कि वह 2010 से ही इस परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। इरा के मुताबिक इन नतीजों से लोगों का लड़कियों और हैंडिकैप्ड लोगों के प्रति नजरिया बदलेगा। इरा ने कहा, ‘मैं आईएएस अधिकारी बनना चाहती थी। मैं शारीरिक रूप से निशक्त लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं।’
वहीं परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल करने वाली केरल की रहने वाली पेशे से डॉक्टर रेणु राज (27) ने कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी बड़ी सफलता उनके कदम चूमेगी। परिणाम घोषित होने के बाद खुशी से फूले न समाते हुए उन्होंने इस प्रतिष्ठित परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों से कहा कि दृढ़ता सफलता दिलाती है।
कोल्लम के एक ईएसआई अस्पताल में डॉक्टर राज ने कहा, ‘यह मेरा पहला प्रयास था। पिछली रात से ही मैं तनावग्रस्त थी। मैंने अपने माता-पिता को नहीं बताया था कि आज दोपहर मेरा परीक्षा परिणाम आने वाला है।’
उन्होंने कहा, ‘परीक्षा परिणाम जानने के लिए वेबसाइट खोलते समय मेरा तनाव चरम पर था। मैं वेबसाइट पर अपना परिणाम देख पाती इससे पहले ही मेरा फोन घनघनाना शुरू हो गया और मेरे दोस्त और चाहने वालों में मुझे बताया कि मैंने देश भर में दूसरा स्थान प्राप्त किया है।’ राज कोट्टायम जिले के चंगनाचेरी जिले की रहने वाली हैं। पिछले एक साल से वह दिल्ली में कोचिंग ले रही थीं, जिसके कारण वह और उनके माता-पिता दिल्ली में ही रह रहे थे।उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास नहीं था कि मैं पहले ही प्रयास में सफल हो जाऊंगी। मैं अपनी सफलता का श्रेय अपने प्रियजनों को देती हूं, जिन्होंने हर घड़ी मेरा साथ दिया।’
राज ने कहा, ‘परीक्षा में शामिल होने वाले उम्मीदवारों से मैं कहना चाहती हूं कि दृढ़ता अपने आप में इनाम है।’ गर्व से फूले नहीं समा रहे उनके पिता ने कहा कि राज की सफलता गरीबों तथा दबे-कुचलों को समर्पित है। उन्होंने कहा कि वह इस बात से आश्वस्त हैं कि उनकी बेटी समाज के सबसे कमजोर तबके के लोगों की मदद करेगी। उन्होंने कहा, ‘एक डॉक्टर होने के नाते वह 50 या 100 मरीजों की मदद कर सकती थी, लेकिन एक सिविल सेवा अधिकारी के नाते उसके एक फैसले से हजारों लोगों को लाभ मिलेगा।’ राज के पति भी डॉक्टरी पेशे से ही जुड़े हैं।
वहीं इस परीक्षा में तीसरा स्थान हासिल करने वाली निधि गुप्ता ने कहा कि यह उनके लिए एक गर्व का पल है। वर्तमान में सहायक सीमा शुल्क एवं केंद्रीय आबकारी आयुक्त के तौर पर काम कर रहीं निधि ने कहा, ‘यह सच में एक गर्व का पल है। मैंने कड़ी मेहनत की और आखिरकार उसका फल मिला।’ निधि ने कहा कि टॉप थ्री में आने से वह खुश हैं, लेकिन असली खुशी तब मिलेगी जब मैं फील्ड में उतरूंगी।
चौथा स्थान हासिल करने वाली वंदना राव ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में पहला स्थान हासिल किया। तीसरे प्रयास में सफल रहने वाली वंदना ने कहा, ‘मैंने लोगों को दो-दो बार फोन कर यह देखने के लिए कहा कि मैं परीक्षा में सफल रही या नहीं। यह एक खुशनुमा आश्चर्य है। यह सच में कड़ी मेहनत का नतीजा है।’
इनके अलावा यूपीएससी में पांचवा स्थान पाने वाले सुहर्ष भगत बिहार के रहने वाले हैं और वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं।
बिहार के समस्तीपुर जिले में रहने वाले उनके डॉक्टर पिता फलेंद्र भगत ने कहा, ‘सुहर्ष का 2011 में भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा (आईएएएस) में चयन हुआ था। 2012 में उसने दोबारा परीक्षा दी और उसे भारतीय सूचना सेवा में जगह मिली। 2013 में उसे आईआरएस (आयकर) मिला। वह इस समय नागपुर में तैनात है।’
इसके बाद दो और बेटियों की चर्चा करना चाहूँगा उनमे दोनो ‘नेहा’ जमशेदपुर की है. पहली नेहा सिंह जिसने २२ वां रैंक हासिल किया हैं, इनके पिता ग्रामीण कार्य विभाग घाटशिला में सहायक अभियंता है. यह झारखण्ड टॉपर हैं. इन्होने प्लस टू की पढाई २००६ में संत माइकल स्कूल पटना से की हैं, उसके बाद २०११ में बिट्स पिलानी से केमिकल स्ट्रीम में बी टेक किया. यह भी दिल से गरीबों की सेवा करने चाहती हैं.
जमशेदपुर की दूसरी बेटी हैं – नेहा कुमारी, इन्होने २००७ में विद्या भारती चिन्मया स्कूल से प्लस टू किया, और BIT मेसरा, रांची से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी. टेक किया और २०१२ टाटा स्टील के इलेक्ट्रिकल टी एंड डी विभाग में मैनेजर के रूप में योगदान किया. २०१४ में टाटा स्टील की नौकरी छोड़कर IAS की तैयारी में लग गयी और २०१५ में पहली बार में ही २६ वें रैंक पाकर खुश है. इनकी उम्र भी है २६ साल है और २६ वां रैंक! क्या संयोग है! इनके पिता सुनील कुमार दुबे साधारण परिवार से आते हैं और टाटा मोटर्स के कर्मचारी हैं. इनका पैतृक गांव पटना का दबेशपुर है. यह मेरे साथ एक ही विभाग में टाटा स्टील में काम कर चुकी हैं, इसलिए भी मुझे विशेष खुशी है जब मैंने उन्हें फोन कर बधाई दी तो काफी खुश लग रही थी और टाटा स्टील के सेवा काल को अपने जीवन का अहम पड़ाव मानती हैं. उनकी प्रेरणा स्रोत उनके ही विभाग के सीनियर राजीव रंजन सिंह, IPS हैं, जमशेदपुर की पूर्व आयुक्त निधि खरे, हिमानी पाण्डेय, नितिन मदन कुलकर्णी भी इनके आदर्श हैं. उनको टाटा स्टील का एथिक्स बहुत ही प्रिय है और आगे भी एथिक्स की राह पर चलने की हर सम्भव प्रयास करेंगी. ऐसा उनका मानना है.
कुल 1236 सफल उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गई है। इनमें से 590 सामान्य श्रेणी, 354 ओबीसी, 194 एससी, 98 एसटी वर्ग के प्रत्याशी हैं। शीर्ष चार स्थानों पर महिलाओं ने बाजी मारी है।
मोदी जी की बेटी बचाओ अभियान को इन बेटियों ने चार चाँद लगा दिए हैं| अब तो लोगों को समझ जाना चाहिए कि हमारी बेटियां कितनी काबिल हैं और इन्हें यथोचित सम्मान दिया ही जाना चाहिए| वैसे पहले से भी हमारी बेटियां हरेक क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं| इन्हें सैलूट और आगे की सफलता की भरपूर कामना! “ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे”… एक बार फिर से गाने का मन हो रहा है|
हम आगे बढ़ रहे हैं और आगे बढ़ते जायेंगे| योग के परिणाम आने अभी बाकी हैं ! जय भारत जय हिन्द!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
हार्दिक आभार आदरणीय सिंघल साहब!
बहुत अच्छा लेख ! भारत की इन क़ाबिल बेटियों को नमन !!