प्रेम की बातें
प्रेम की पाती लेकर
आता था डाकिया
पुकारता जब नाम मेरा
हिरणी सी चपलता लिए
कर जाती थी चोखट को पार
लगा लेती दिल से
प्रेम की पाती ।
छुपकर पढ़ती
ढाई अक्षर प्रेम को
जोड़ लेती ख्वाबो से रिश्ते
होसला ,ज़माने से डर नहीं का
भर लेती मन में ।
वो सामने आते तो
होंठ थरथराने लगते
मानों शब्द को कर्फ्यू लगा हो
बस आँखे ही कर जाती थी
प्रेम का इजहार ।
सुबह नींद खुली तो लगा
जेसे एक ख्वाब देखा था प्रेम का
अब डाकिया भी नहीं लाता
प्रेम की पाती
मेने भी ख़त लिखा ही नहीं
क्योंकि हो जाती है
मोबाईल पर प्रेम की बातें ।
— संजय वर्मा “दृष्टि “
वाह वाह क्या बात है श्री संजय वर्मा जी, बहुत खूब……प्रेम की पाती और मोबाईल, बहुत बढियां…..
बहुत खूब !