कविता
शहर के उपर नीले साफ़
आकाश का शामियाना
मन में बिना पंख
उड़ने की चाह
हवा में उड़ती सौधी गंध
खिड़की से देखती
सडक पर बच्चो का दल
आँखे जुगनुओं सी
झिलमिलाती
माथे पर हल्दी का
तिलक
लगा वसंत बैठा
उनीदी आँखे लिए
दूर कन्दराओं में …..!!!
…रितु शर्मा
बढ़िया !
बहुत अछे विचार .
वाह महोदया ऋतु शर्मा जी, बहुत खूब बहुत खूब, आभार
shandar