कविता

टेसू 

खिले टेसू
ऐसे लगते मानों
खेल रहे हो पहाड़ों से होली ।

सुबह का सूरज
गोरी के गाल
जेसे बता रहे हो
खेली है हमने भी होली
संग टेसू के ।

प्रकृति के रंगों की छटा
जो मोसम से अपने आप
आ जाती है धरती पर
फीके हो जाते है हमारे
निर्मित कृत्रिम रंग ।

डर  लगने लगता है
कोई काट न ले वृक्षो को
ढंक न ले प्रदूषण सूरज को ।

उपाय ऐसा सोंचे
प्रकृति के संग हम
खेल सके होली ।

संजय वर्मा “दृष्टि “

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच

2 thoughts on “टेसू 

  • महातम मिश्र

    बहुत ही बढियां रचना मान्यवर संजय जी, प्रदुषण अब सूरज से बड़ा होने के लिए गतिमान हो गया है जिसको हम खूब प्रोत्साहित कर रहें है काश लोग इस समस्या को समस्या की तरह लेते तो अमावस की रात का अहसास न होता……

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छे भाव !

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