कविता

माँ मुझे जीना है…

माँ क्यों कहती थी तुम?
बाहर जाओ तो
एक पुरुष के साथ जाओ
पिता , पति, पुत्र या भाई
मैं एक पुरुष के साथ ही तो बाहर थी
जो न पिता था
ना ही भाई
पर उसने साथ निभाने की
कसम थी खाई

लड़ गया न वोह
उन दरिंदो से
जो पुरुष ही थे
काश तुम मुझे बता पाती
कि उन पुरुषो की पहचान
जो किसी माँ केसच्चे बेटे न थे
जिनकी कोई बहन न थी
जिनकी कभी बीबी न होगी
जो कभी कन्या संतान नही जनेगे

माँ क्यों बैठती मैं
फिर उस
पीले पर्दों वाली
सफ़ेद बस में ……….

माँ मुझे जीना है….

नीलिमा शर्मा (निविया)

नीलिमा शर्मा (निविया)

नाम _नीलिमा शर्मा ( निविया ) जन्म - २ ६ सितम्बर शिक्षा _परास्नातक अर्थशास्त्र बी एड - देहरादून /दिल्ली निवास ,सी -2 जनकपुरी - , नयी दिल्ली 110058 प्रकाशित साँझा काव्य संग्रह - एक साँस मेरी , कस्तूरी , पग्दंदियाँ , शब्दों की चहल कदमी गुलमोहर , शुभमस्तु , धरती अपनी अपनी , आसमा अपना अपना , सपने अपने अपने , तुहिन , माँ की पुकार, कई वेब / प्रिंट पत्र पत्रिकाओ में कविताये / कहानिया प्रकाशित, 'मुट्ठी भर अक्षर' का सह संपादन

3 thoughts on “माँ मुझे जीना है…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब, निविया जी !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    एक लड़की के मनोभाव को बखूबी बिआं कर दिया .

  • महातम मिश्र

    बहुत खूब महोदया

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