ग़ज़ल
उनको अपनी अक्ल पर गफलत पुरानी है तो है ।
बे वजह सी बात पर जहमत बुलानी है तो है ।।
है जिन्हें हैवानियत से फिर मुहब्बत बे पनाह ।
उनको चादर फिर किसी तुरबत चढ़ानी है तो है ।।
खा गए जो मुल्क की दौलत सरे बाजार में ।
भूख की बाकी बची हसरत मिटानी है तो है ।।
राम अल्ला और जीसस एक हैं सबको खबर ।
साजिशो के वास्ते नफ़रत चलानी है तो है ।।
जेल में है वह दरिंदा जिसकी दहशत बेशुमार।
हर गली में कुछ न कुछ सोहबत निशानी है तो है।।
कुर्सियां उसकी ही होंगी था भरोसा ये उसे ।
आज फिर उसकी जुबां फुरकत कहानी है तो है ।।
मंदिर-ओ-मस्जिद से जाते रास्ते भी मैकदे ।
इस तरह कुछ यार के निसबत पिलानी है तो है ।।
हक कभी मांगा तो दुश्मन ख़ास का ओहदा मिला।
रहनुमाओं को यहां फितरत दिखानी है तो है ।।
–– नवीन मणि त्रिपाठी
बहुत अच्छी ग़ज़ल !