सूरज
तुमसे ही यह धरती सुन्दर है
तुमसे ही इस धरती पर बचा जीवन है
कोटि कोटि प्रकाश वर्ष दूर रहकर भी तुम
धरती का कितना खयाल रखते हो
दिए गए ताप और उर्जा का
कभी हिसाब नही मांगते
ना ही दी हुई नि:शुल्क सहुलियतों पर
किसी प्रकार का कोई टैक्स लगाते
तुम धरती कभी से नही कहते कि
कृतज्ञता वश अपने गर्भ में संचित
आपार खनिज वह तुम्हें सौंप कर
हो जाए खाली और
लिख दे अपनी गुलामी तुम्हारे नाम !!!
बहुत अच्छी कविता !