कविता
ज़िन्दगी तेरी बज़्म हम उल्फ़त से सजाते..
फ़ुरसत न हुई गम रहे हरदम आते जाते….
जंग-ए-जज़्बात और नाज़ुक सा दिल
रुक जाते हैं क़दम तुम तक आते-आते….
मैं स्याह रात का तन्हा मुसाफ़िर जुगनू हूँ
ये हवाएँ न बुझा सकेंगी मुझे जगमगाते….
परिंदों का हुनर है आसमान को छू लेना
माकूल न हो हवा तो क्या पंख रुक जाते…..
ये आरज़ू ये ज़ुस्त जू इंतज़ार की ख़लिस
जो होती तुम्हारे दिल में तो समझ जाते…..
— अनिता
बहुत खूब..
शुक्रिया कामनी जी
sundar abhivyaktii..
शुक्रिया प्रीति जी
बहुत खूब .
शुक्रिया भमरा जी
बहुत अच्छी कविता !
शुक्रिया सिंघल जी