कविता

कविता

ज़िन्दगी तेरी बज़्म हम उल्फ़त से सजाते..

फ़ुरसत न हुई गम रहे हरदम आते जाते….

जंग-ए-जज़्बात और नाज़ुक सा दिल

रुक जाते हैं क़दम तुम तक आते-आते….

मैं स्याह रात का तन्हा मुसाफ़िर जुगनू हूँ

ये हवाएँ न बुझा सकेंगी मुझे जगमगाते….

परिंदों का हुनर है आसमान को छू लेना

माकूल न हो हवा तो क्या पंख रुक जाते…..

ये आरज़ू ये ज़ुस्त जू इंतज़ार की ख़लिस

जो होती तुम्हारे दिल में तो समझ जाते…..

अनिता 

8 thoughts on “कविता

  • कामनी गुप्ता

    बहुत खूब..

    • अनीता मण्डा

      शुक्रिया कामनी जी

  • प्रीति दक्ष

    sundar abhivyaktii..

    • अनीता मण्डा

      शुक्रिया प्रीति जी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • अनीता मण्डा

      शुक्रिया भमरा जी

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

    • अनीता मण्डा

      शुक्रिया सिंघल जी

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