कविता

रोते हुए तमाशा

आतंकवादी कैसे पा जाते है बारूद
क्या ढोकर लाते या चुराकर
और तो और वे
बना लेते है बम

जब धमाका होता
तभी मालूम होता है
उनका आतंकीपन

छिन जाते है बच्चों से माँ -बाप
माँ -बाप उनके बच्चे
और हम गिनने लग जाते है
हर दूसरे दिन
मरने या घायल होने वाले
बेकसूर लोगों संख्या

जिनकी सांसों में बारूदी गंध
आँखों में है खून
कानों में धमाको की गूंज
जो पाक की शे पर चल रहे
कठपुतलियों की तरह

जहाँ -तहाँ खौफ पैदा रहे
क्यों नहीं ख़त्म कर पा रहे
उनके आतंकीपन को
शायद हम बुजदिल हो गए है
तभी तो वे निर्दोषो की
हर बार जान ले रहे है

और हम दहशत भरी
भीड़ में देख रहे है
रोते हुए तमाशा

संजय वर्मा “दृष्टि”

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच

One thought on “रोते हुए तमाशा

  • विजय कुमार सिंघल

    बेहतर कविता !

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