लघुकथा : अंधा
“अरे बाबा ! आप किधर जा रहे है ?,” जोर से चीख़ते हुए बच्चे ने बाबा को खींच लिया.
बाबा सम्हाल नहीं पाए. जमीन पर गिर गए ,” बेटा ! आखिर इस अंधे को गिरा दिया.”
“नहीं बाबा, ऐसा मत बोलिए.”
बच्चे ने बाबा को हाथ पकड़ कर उठाया ,” मगर , आप उधर क्या लेने जा रहे थे ?”
“मुझे मेरे बेटे ने बताया था, उधर खुदा का घर है. आप उधर इबादत करने चले जाइए .”
“बाबा ! आप को दिखाई नहीं देता है. उधर खुदा का घर नहीं, गहरी खाई है .”
आदरणीय विजय कुमार सिंघल जी
आप को मेरी लघुकथा पसंद आई . इस के लिए आप का आभार .
मार्मिक लघुकथा। एक ओर सहज मानवीयता तो दूसरी ओर अपनों के प्रति क्रूरता।