कविता

आवारा बादल

आवारा बादल हूँ मैं

मुझे एहसासों से

तरबतर करता पानी हो तुम

अपने आगोश में ले तुम्हें

मस्त हवाओं से हठखेलियाँ करता

दूर तक निकल जाता हूँ

अपार उर्जा से दमकता

गर्जन करता

इस मिलन का उद्घोष करता हूँ

मगर फिर ना जाने क्यूँ

तुम बिछुड़ जाती हो मुझसे

बरस जाती हो अपने बादल को छोड़

और देखो …मैं बिखर जाता हूँ

मेरा अस्तित्व ही मिट जाता है

जानता हूँ

इस बंज़र ज़मीन को भी

तुम्हारी प्यास रहती है

अगर तुम न बरसो

तो नया सृजन कैसे हो

अब लौट आना जल्दी

आ मिलना मुझको

और बना देना मुझको

एक बार फ़िर वही काला बादल

जो घड़ घड़ाता

तुम्हें आगोश में ले

प्रफुल्लित चला जाता है दूर तक….

देखो हमारा ये निरंतर मिलन नियती भी है

……..मोहन सेठी ‘इंतज़ार’

One thought on “आवारा बादल

  • Manoj Pandey

    अच्छी, बहुत अच्छी कोशिश है।

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