मुझे धरा पर आने दो
मुझे धरा पर आने दो माँ
अच्छी बिटिया बन दिखाऊँगी,
देश का भविष्य है मुझसे
तेरा नाम ऊँचा उठाऊँगी।
उम्र लगने की दुआ करती माँ
छुपाती अपने आँचल में ,
तू क्यों मुझे धकेल रही हो
मृत्यु के इस दलदल में।
कितनी भाग्यशाली है तू
तेरी माँ ने तूझे जन्म दिया,
मुझे गर्भ में मार रही हो
मैंने क्या ऐसा पाप किया।
माँ ,ममता क्या होती है
मुझको भी तू बता दे,
प्यार दुलार का मतलब माँ
मुझको भी तू समझा दे।
माता कुमाता नहीं होती
ये बात मैंने सुनी है,
कौन सी मजबूरी है
माँ ही कातिल बनी है।
कलेजा तेरा नही काँपा
मुझे मौत की सजा सुनाके,
मेरी अर्ज एकबार सुनले माँ
तू माँ का दिल बनाके।
एक जीवन को जन्म देने का
मिला है सौभाग्य तूझे,
एक एहसान तू करदे मुझपे
ममतामयी माँ बचा ले मुझे।
– दीपिका कुमारी दीप्ति
बहुत खूब !
सराहनीय प्रोत्साहन के लिये दिल से आभार महाशय !
कविता के शीर्षक ने आकर्षित किया। कविता पढ़ी। प्रभावशाली है। लेखिका की सोच एवं उसकी रचना को बधाई। इस कविता के अनुरूप ही आर्य समाज के भजनोपदेशक एक भजन भी गाया करते हैं। मैंने उसे कुछ वर्ष पूर्व रिकॉर्ड भी किया था। मेरे कंप्यूटर में है। ढूंढ़ना पड़ेगा। एक बार ढूंढ कर सुनने की इच्छा जाग उठी है। लेखिका बहन को हार्दिक धन्यवाद।