गीतिका/ग़ज़ल

दरिया भी जल्दी में था

मैं भी गुम माज़ी में था
दरिया भी जल्दी में था

एक बला का शोरो-गुल
मेरी ख़ामोशी में था

भर आयीं उसकी आँखें
फिर दरिया कश्ती में था

एक ही मौसम तारी क्यों
दिल की फुलवारी में था ?

सहरा सहरा भटका मैं
वो दिल की बस्ती में था

लम्हा लम्हा राख हुआ
मैं भी कब जल्दी में था ?

 

प्रखर मालवीय कान्हा

9911568839

प्रखर मालवीय 'कान्हा'

नाम- प्रखर मालवीय कान्हा पिता का नाम - श्री उदय नारायण मालवीय जन्म : चौबे बरोही , रसूलपुर नन्दलाल , आज़मगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) में 14 नवंबर 1991 को । वर्तमान निवास - दिल्ली शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा आजमगढ़ से हुई. बरेली कॉलेज बरेली से बीकॉम और शिब्ली नेशनल कॉलेज आजमगढ़ से एमकॉम। सृजन : अमर उजाला, हिंदुस्तान , लफ़्ज़ , हिमतरू, गृहलक्ष्मी , कादम्बनी इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ। 'दस्तक' और 'ग़ज़ल के फलक पर ' नाम से दो साझा ग़ज़ल संकलन भी प्रकाशित। संप्रति : नोएडा से सीए की ट्रेनिंग और स्वतंत्र लेखन। संपर्क : [email protected] ) 9911568839

2 thoughts on “दरिया भी जल्दी में था

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर गजल !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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