दरिया भी जल्दी में था
मैं भी गुम माज़ी में था
दरिया भी जल्दी में था
एक बला का शोरो-गुल
मेरी ख़ामोशी में था
भर आयीं उसकी आँखें
फिर दरिया कश्ती में था
एक ही मौसम तारी क्यों
दिल की फुलवारी में था ?
सहरा सहरा भटका मैं
वो दिल की बस्ती में था
लम्हा लम्हा राख हुआ
मैं भी कब जल्दी में था ?
प्रखर मालवीय कान्हा
9911568839
बहुत सुंदर गजल !
बहुत खूब .