गीतिका/ग़ज़ल

गजल

करिया -ए जां में ख़ामोशी है अभी
दिल में इक हूक सी उठी है अभी

अब्र से कह दो टूटकर बरसे
प्यास सहराओं की जगी है अभी

तेरे दिल से जो आशनाई थी
रूह में मेरी वह बसी है अभी

तुम अभी से पलक भिगोने लगे
दास्तां दर्द की पड़ी है अभी

तेरा दामन न भीग जाए कहीं
चश्म-ऐ-पुरनम झुकी हुई है अभी

रफ़्ता रफ़्ता यक़ीन आएगा
इश्क़ की हर अदा नई है अभी

तेरी खुशबू से मेरी सांसों की
गुफ़्तगु सी कोई हुई है अभी

कैसे हो ज़िन्दगी खिलाफे जहा
तेरा ही ग़म उठा रही है अभी

हम से पूछो ना “प्रेम “के किस्से
हम पे दीवानगी चढ़ी है अभी

— प्रेम लता शर्मा

प्रेम लता शर्मा

नाम :- प्रेम लता शर्मा पिता:–स्व. डॉ. दौलत राम "साबिर" पानीपती माता :- वीरां वाली शर्मा जन्म :- 28 दिसम्बर 1947 जन्म स्थान :- लुधियाना (पंजाब) शिक्षा :-एम ए संगीत, फिज़िकल एजुकेशन परिचय :-प्रेमलता जी का जन्म दिसम्बर 1947 बंटवारे के बाद लुधियाना के ब्राह्मण परिवार मैं हुआ। 1970 से 1986 तक शिक्षा विभाग में विभिन्न स्कूलों और कॉलेज में पढ़ाया उसके बाद यु.एस.ए. चले गएँ वहां आई.बी.एम. से रिटायर्ड हैं । छोटी सी उम्र में माता-पिता के साये से वंचित रही हैं । पिता जी अजीम शायर व भाई सुदर्शन पानीपती हिंदी लेखक थें । अपने पिता जी की गजलों को संग्रह कर उनकी रचनाओं की एक पुस्तक ‘हसरतों का गुबार’ प्रकाशित कर चुकी हैं ।भारत से दूर रहने पर भी साहित्य के प्रति लगन रोम रोम में बसा है।

One thought on “गजल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार गजल !

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