गजल
करिया -ए जां में ख़ामोशी है अभी
दिल में इक हूक सी उठी है अभी
अब्र से कह दो टूटकर बरसे
प्यास सहराओं की जगी है अभी
तेरे दिल से जो आशनाई थी
रूह में मेरी वह बसी है अभी
तुम अभी से पलक भिगोने लगे
दास्तां दर्द की पड़ी है अभी
तेरा दामन न भीग जाए कहीं
चश्म-ऐ-पुरनम झुकी हुई है अभी
रफ़्ता रफ़्ता यक़ीन आएगा
इश्क़ की हर अदा नई है अभी
तेरी खुशबू से मेरी सांसों की
गुफ़्तगु सी कोई हुई है अभी
कैसे हो ज़िन्दगी खिलाफे जहा
तेरा ही ग़म उठा रही है अभी
हम से पूछो ना “प्रेम “के किस्से
हम पे दीवानगी चढ़ी है अभी
— प्रेम लता शर्मा
बहुत शानदार गजल !