हम हैं, नकलचियों का देश !
दुनिया के विश्वविद्यालयों की श्रेष्ठता का मूल्यांकन करनेवाले एक विश्व-केंद्र का ताजा मूल्यांकन भारत को चैंकानेवाला है। उसके अनुसार दुनिया के पहले 340 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में भारत का एक विश्वविद्यालय भी नहीं है। 341 वें नंबर पर है, दिल्ली का ‘इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नाॅलाजी’! 379 नंबर पर है, दिल्ली विश्वविद्यालय और फिर हमारे कई नामी-गिरामी विश्वविद्यालयों का नंबर 400, 500 या 600 पर जाकर टिकता है। क्या वजह है कि हमारा देश पढ़ाई-लिखाई में इतना पिछड़ा हुआ है? ऐसा नहीं है कि दुनिया के सारे श्रेष्ठ विश्वविद्यालय अमेरिका में हैं। वे यूरोप में तो हैं ही, चीन और जापान में भी हैं। इस्राइल, द.कोरिया, बेल्जियम, स्पेन और स्विटजरलैंड जैसे छोटे-छोटे देशों में भी हैं और वे भारत से बहुत आगे हैं।
हमारे विश्वविद्यालय इतने फिसड्डी क्यों हैं? इस प्रश्न के जवाब में आई.आईटी. कानपुर के चेयरमेन ने यह कहकर अपनी बला टाली कि उन देशों के श्रेष्ठ वि.वि. 500-600 साल पुराने हैं और उनका बजट करोड़ों डाॅलर का होता है। ये दोनों तर्क बिल्कुल बोदे हैं। दुनिया के सबसे ज्यादा श्रेष्ठ वि.वि. अमेरिका में है लेकिन स्वयं अमेरिका सवा दो सौ साल पुराना देश है। जहां तक पुराने होने का प्रश्न है, भारत के वि.वि. की हजारों साल पुरानी परंपरा है। भारत के जिन नए वि.वि. की हम यहां चर्चा कर रहे हैं, वे भी डेढ़ सौ साल पुराने हैं लेकिन असली सवाल यह है कि उनमें पढ़ाया क्या जाता है? अंग्रेज ने कलकत्ता, मद्रास और बंबई में जो तीन वि.वि. सबसे पहले स्थापित किए थे, ज़रा उनका पाठ्यक्रम उठाकर देखिए। उनका सबसे ज्यादा जोर ‘अंग्रेजी भाषा, साहित्य और धर्म-विद्या’ पढ़ाने पर था। वे दर्शन और तर्क-विद्या नहीं पढ़ाते थे। वे विज्ञान और गणित नहीं पढ़ाते थे। ऐसी परंपरा में से मौलिकता का जन्म कैसे हो सकता था? अब हमारे लगभग ढाई सौ वि.वि. में लगभग सभी विषय पढ़ाए जाते हैं लेकिन ढर्रा वही है, जो अंग्रेज महाप्रभुओं ने हम पर लादा था। इसलिए हमारे वि.वि. फिसड्डी हैं। एक बात और! पश्चिम में वि.वि. शिक्षा मंहगी है और उसमें वही युवक जाते हैं, जिनकी रुचि और क्षमता है। अपने यहां तो भेड़ि़या धसान है। डिग्री और नौकरी का लालच ही वि.वि. को ठसाठस भर देता है। वे छात्र मौलिक चिंतन और वैज्ञानिक आविष्कार क्यों करेंगे, कैसे करेंगे? इसके अलावा हमारे विश्वविद्यालयों पर अनिवार्य अंग्रेजी और अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई का ग्रहण लगा हुआ है। दुनिया का कोई श्री श्रेष्ठ वि.वि. ऐसा नहीं है, जहां विदेशी भाषा या विदेशी भाषा का माध्यम अनिवार्य हो। भारत में अंग्रेजी के कारण हमारा देश नकलचियों का देश बन गया है। हम विदेशियों की नकल करके रेडियो,टेलिविजन, मोबाइल फोन और यहां तक कि हवाई जहाज भी बना लेते हैं लेकिन आप ज़रा मुझे बताइए कि हमारे विश्वविद्यालयों ने दुनिया को कौनसा मौलिक चिंतन या मौलिक आविष्कार करके दिया है?
डॉ वेद प्रताप वैदिक