अमन चाँदपुरी के पचास दोहे
हे! विधना तूने किया, ये कैसा इंसाफ।
निर्दोषों को है सजा, पापी होते माफ।1।
कैसे देखें बेटियाँ, बाहर का परिवेश।
घर में रहते हुए भी, हुआ पराया देश।2।
दोहे संत कबीर के, तन-मन लेय उतार।
मानस पढ़ ले तू सखे, भ़र जीवन उजियार।3।
न्याय व्यवस्था पंगु है, जनता है बेहाल।
आम आदमी मर रहा, कैसा माया जाल।4।
छत पर छिटकी चाँदनी, फैला रही उजास।
जाग गई है आज फिर, पिया मिलन की आस।5।
अलियों – कलियों में हुई, कुछ ऐसी तकरार।
फूल सभी मुरझा गए, माली रहा निहार।6।
पावस की ऋतु आ गई, हर्षित हुए किसान।
प्रेम गीत गाते हुए, लगा रहे हैं धान।7।
बैठो यूँ न उदास तुम, मंजिल तनिक न दूर ।
यदि मन से तुम थक गए, तन भी होगा चूर।8।
बैठे-बैठे हो गया, फिर इक दिन बेकार।
पता न कब हो पायगा, प्रियतम का दीदार।9।
‘अमन’ करे प्रभु याचना, बैठे अपने द्वार।
प्रभु जी मैं तो कवि हुआ, करो शब्द स्वीकार।10।
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर।
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।11।
माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल।
कौन चुका पाया भला, ममता का है मोल।12।
भक्ति,नीति अरु रीति, की विमल त्रिवेणी होय।
कालजयी मानस सरिख , ग्रंथ न दूजा कोय।13।
इस झूठे संसार में, नहीं सत्य का मोल।
वानर क्या समझे रतन, है कितना अनमोल।14।
जिनको निज अपराध का, कभी न हो आभास।
उनका होता जगत में , पग-पग पर उपहास।15।
जंगल-जंगल फिर रहे, साधू-संत महान।
ईश्वर के दरबार के, मालिक क्यों शैतान।16।
जब से परदेशी हुए, दिखे न फिर इक बार।
होली-ईद वहीं मनी, वहीं बसा घर द्वार।17।
डूब गई सारी फसल, उबर न सका किसान।
बोझ तले दबकर अमन , निकल रही है जान।18।
निद्रा लें फुटपाथ पर, जो आवास विहीन।
चिर निद्रा देने उन्हें, आते कृपा-प्रवीण।19।
पथ तेरा खुद ही सखे, हो जाये आसान।
यदि अंतर की शक्ति की, तू कर ले पहचान।20।
निश्चित जीवन की दिशा, निश्चित अपनी चाल।
सदा मिलेंगे राह में, कठिनाई के जाल।21।
पावस की ऋतु आगई, शीतल बहे बयार।
धरती हरियाने लगी,चहक उठा संसार।22।
गर्मी से भीगा बदन, बरस रही है धूप।
तन पर कपड़ा डाल लो, जले न तेरा रूप।23।
मतला-मक़्ता-काफिया, हैं ग़ज़लों के अंग।
तुम जब भी लिखना ग़ज़ल, रखना इनको संग।24।
दोहे संत कबीर के, तन-मन में तू घोल।
मानस पढ़कर तू सखे, मीठी वाणी बोल।25।
नन्हे बच्चे देश के, बन बैठे मज़दूर।
पापिन रोटी ने किया, उफ! ऐसा मज़बूर।26।
टूटी-फूटी जिन्दगी, अपनी है जादाद।
मालिक ने हमसे किया, कभी नहीं संवाद।27।
नन्हीं-मुन्हीं बच्चियाँ, माँग रही है भीख।
हालत से मजबूर है, क्या लेंगी ये सीख।28।
मार रहें धनवान हैं, निर्धन को अब लात।
उसके किस्मत में नहीं, रही दाल औ’ भात।29।
सपना टूटा आँख में, नीद हुई अब दूर।
मन आतुर प्रिय मिलन को, बारिश से मजबूर।30।
गागर में सागर भरूँ, भरूँ सीप आकाश।
प्रभुवर ! ऐसा तू मुझे, दे मन में विश्वास।31।
रूप तुम्हारा देखकर, मन में उठा विचार।
यही कहीं तो है नहीं, परियों का संसार।32।
उमर बिता दी याद में, प्रियतम हैं परदेश।
निशदिन आते स्वप्न में, धरे काम का वेश।33।
खालीहांड़ी देख कर, बालक हुआ उदास।
लेकिन माँ से कह रहा, भूख लगी ना प्यास।34।
ज्ञानी से ज्ञानी मिले, करें ज्ञान की बात।
ज्ञान और अज्ञान में, होती लातम लात।35।
षोडश वर्षी बालिका, खड़ी नदी के तीर।
प्रिय दर्शन की आस में, ठाढ़ी व्यग्र अधीर।36।
सोच रहा हूँ मैं प्रिये, लिए आँख में नीर।
क्यों यों मुझको पीर दी, बन मेरी तकदीर।37।
प्रियतम ! तेरी याद में, दिल मेरा बेचैन।
क्यों तुम दूर चले गए, तड़प रहे हैं नैन।38।
एक आँख में नीर है, एक आँख में पीर।
फिर भी तुम हो मारते, कटु शब्दों के तीर।39।
झूठों के संसार में, नहीं सत्य का मोल।
सिक्कों के बदले यहाँ, मिलते झूठे बोल।40।
नहीं किताबी ज्ञान से, चलने वाला काम।
बिन अनुभव औ’ मनन के, साक्षरता बेकाम।41।
हे दिल्ली के देवता, करो वोट स्वीकार।
हम सेवक हैं आपके, करना हमसे प्यार।42।
प्यार बिका बाजार में , दो कौड़ी के मोल।
अमन रहा जिह्वा सिले,ढाई आखर तौल।43।
कविता प्रभु की है अमन, बहुत बड़ी सौग़ात।
नौसिखए कवि दे रहे, हैं इसको आघात।44।
रे मन! सुन करते नहीं, दो लोगों से प्यार।
एक म्यान में एक ही, रहती है तलवार।45।
मन में तेरा रूप है, तू इकलौता प्यार।
दिल मेरा बहका रही, पायल की झनकार।46।
देवदास-सा तू न बन, कर मत वैसा प्यार।
तुझको पारो के सिवा, दिखे नहीं घर-द्वार।47।
मीठी वाणी बोल तू, मीठा रख व्यवहार।
सदा पायगा तू अमन, बड़े-बड़ों का प्यार।48।
सारी दुनिया मतलबी , सब मतलब के यार।
कौन किसी का है यहाँ, सब मतलब का प्यार।49।
हे मन ! यों न उदास हो, सहता जा सब पीर।
असुवन में जब डूबुगाँ, सब होंगे गम्भीर।50।
– अमन चाँदपुरी