नज़्म
‘अन्नू’
अन्नू —
तुम आज मुझसे रूठ कर जा रही हो
इतने लम्बे सफर पर
सो मैनें तम्हारे रस्तें में
बिठा दिये है
कुछ शज़र-बरगदों के
उनकी हर टहनियों और हर पत्तियों पर
लिखी हैं तुम्हारे लिए
तुम्हारे नाम की
प्यार भरी नज़्में
अन्नू —
जब चलते-चलते
तुम थक जाना
तो कहीं रुककर
थोड़ा-सा आराम फरमा लेना
अगर बोरियत महसूस हो
तो विशाल शाखाओं से पत्ते तोड़कर
पढ़ लेना एकाध नज़्में
अन्नू —
उन्हें मैनें
सिर्फ तुम्हारे लिए लिखा है
वो प्यार भरी नज़्में
तुम्हारे नाम पर है
अन्नू —
अगर हो सके तो
तुम अपने इस बेमार का दर्द समझना
और आगे मत जाना
उन्हीं में से किसी नज़्म का हाथ पकड़कर
तुम लौट आना
— अमन चाँदपुरी