अनुकरणीय वैदिक विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री
ओ३म्
डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई ईश्वरभक्त, वेदभक्त, महर्षि दयानन्दभक्त, धार्मिक, आर्ष साहित्य के प्रेमी, दयानन्द वांग्मय के रक्षक, प्रसिद्ध प्रचारक, प्रभावशाली वक्ता एवं वेदपारायण यज्ञों के मर्मज्ञ विद्वान हैं। अधिकांश आर्यजन आपको वेद पारायण यज्ञों के ब्रह्मा के रूप में ही जानते हैं जिसका कारण आपके द्वारा देश भर में अनेक वेदपारायण महायज्ञों को सम्पन्न कराया जाना है। यज्ञों के प्रति लोगों में भारी श्रद्धा होने के कारण आर्य जनता बहुकुण्डीय व वेदपारायण यज्ञों में श्रद्धापूर्वक बड़ी संख्या में भाग लेती है। यज्ञ का ब्रह्मा कोई संस्कृतज्ञ विद्वान ही हो सकता है। आप सुसंस्कृतज्ञ होने के साथ वेद, आर्यसमाज की विचारधारा, मान्यताओं व सिद्धान्तों के भी प्रामाणिक विद्वान हैं। वैदिक विषयों के शीर्ष विद्वान व प्रभावशाली वक्ता होने के कारण देश व विदेशों में विस्तृत आर्य समाजों से वेदोपदेश के लिए आपको आमंत्रित किया जाता है। सम्प्रति आप आर्यजगत् प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी प्रणवानन्द, पं. धर्मपाल शास्त्री जी के साथ वेद प्रचारार्थ अमेरिका व कनाडा आदि देशों की यात्रा पर हैं। देहरादून का गुरूकुल पौंधा भी आपकी सेवाओं से धन्य है। आप प्रत्येक वर्ष जून के प्रथम सप्ताह में आयोजित होने वाले गुरूकुल के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव पर मुम्बई से देहरादून पधारते हैं। आपको वेदपारायण यज्ञ का ब्रह्मा बनाया जाता है। वैदिक धर्म व संस्कृति पर आपके प्रभावशाली उपदेश होते हैं। न केवल आप विद्वान एवं उपदेंशक ही हैं अपितु आपने अपने जीवन में भी वैदिक विचारों व सिद्धान्तों को पूरी तरह से धारण किया हुआ है। आपका पूरा परिवार वैदिक विचारों के अनुसार ही जीवनयापन करता है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमति सुदक्षिणा जी भी वेदविदुषी हैं, प्रभावशाली वक्ता हैं और आपको सामाजिक कार्यों में पूरा सहयोग देती हैं। आर्यसमाज के विद्वानों व प्रचारकों के कल्याण की योजनाओं का भी आपने शुभारम्भ किया हुआ है जिससे वृद्ध विद्वानों को जीविकार्थ ससम्मान पेंशन प्रदान की जाती है। आपका जीवन सरल व सादगी से युक्त है। व्यक्तित्व आकर्षक एवं प्रभावशाली है। वाणी में प्रेम, मधुरता, परहित, समाज व देशहित की भावनायें होती हैं जिससे श्रोता व सामान्य जन आपके व्यक्तित्व से आकर्षित होकर आपके प्रशंसक बनकर आपके अनुगामी बन जाते हैं। इस लेख में हम आपके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाल रहे हैं।
डा. सोमदेव शास्त्री का जन्म 6 दिसम्बर सन् 1950 को पिता श्री भवानीरामजी व माता श्रीमति पतासीबाई के यहां मध्यप्रदेश के मन्दसौर जिले के ननोरा ग्राम में हुआ था। आपने गुरूकुल झज्जर, गुरूकुल, प्रभात आश्रम, भोलाझाल-मेरठ एवं पाणिनि महाविद्यालय मोतीझील, वाराणसी में आर्ष संस्कृत व्याकरण, वैदिक शास्त्र एवं महर्षि दयानन्द कृत ग्रन्थों का अध्ययन किया। शास्त्री एवं आचार्य की उपाधियां आपको सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से तथा एम.ए. की उपाधि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से प्राप्त हुई। उच्चतर अध्ययन कर आपने शोध उपाधि पी.एच-डी. प्राप्त की। पी.एच-डी. हेतु आपने ‘वेदों के पद पाठ का विवेचन’ विषय पर डा. अभयदेव शर्मा के निर्देशन में कार्य किया तथा सन् 1983 में यह उपाधि प्राप्त की। यद्यपि डा. अभयदेव शर्मा आपके निर्देशक थे तथापि अधिकांश शोध कार्य आपने आर्यजगत के सुप्रसिद्ध वैदिक विद्वान महर्षि दयानन्द भक्त पं. युधिष्ठिर मीमांसकजी के निर्देशन व सहयोग से किया।
प्राचीन काल में हमारी संस्कृति चार वर्णो व चार आश्रमों पर आधारित थीं। जो व्यक्ति पूर्ण ज्ञानी होता था तथा जिसका व्रत समाज व देश से अज्ञान दूर करना होता था वह ब्राह्मण वर्ण से अभिहित किया जाता था। ब्राह्मण के मुख्य कार्य अध्ययन-अध्यापन, यज्ञ करना व करवाना तथा दान देना व दान लेना हैं। डा. सोमदेवजी ने अध्यापन, यज्ञ करना-करवाना आदि कार्य को चुना। आपने नवम्बर 1989 से दिसम्बर 2010 तक पुनर्वसु आयुर्वेद महाविद्यालय, मुम्बई में संस्कृत व्याख्याता के रूप में कार्य किया। सम्प्रति आप सेवानिवृति का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और सारा समय आर्य समाज के कार्यों को देते हैं। यहां यह भी उल्लेख कर दें कि आपकी धर्मपत्नी श्रीमति सुदक्षिणाजी आर्य समाज माटुंगा के विद्यालय में अध्यापिका रही हैं और अब वह भी सेवानिवृत हैं।
विद्वान व्यक्ति एक वक्ता, लेखक, सम्पादक, वेद प्रचारक, याज्ञिक, पुरोहित, संगठनकर्ता, नेता आदि हुआ करता है। अतः आपने ज्ञान व विद्वता की एक विधा लेखन व सम्पादन का कार्य भी किया। आपके द्वारा रचित लगभग 25 ग्रन्थ वेद-उपनिषद-दर्शन-गीता-रामायण-महाभारत-मनुस्मृति आदि पर आधारित हैं जिनमें वेद सन्देश, उपनिषद् सन्देश, रामायण सन्देश, महाभारत सन्देश आदि सम्मिलित हैं। सम्पादित ग्रन्थों में वेदों में सामाजिक व्यवस्था एवं याज्ञिक प्रक्रिया, नारी महिमा, आर्य भजनोपदेशक (व्यक्तित्व और कृतित्व), अथर्ववेद में जादू टोना नहीं, अथर्ववेद परिशीलन, आदर्श आर्य परिवार आदि हैं। अर्थववेद में जादू टोना नही, यह ग्रन्थ डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा रचित है जिसे ‘अथर्ववेद है ब्रह्मवेद’ नाम भी दिया गया है।
डा. सोमदेव शास्त्री ने ग्रन्थों के लेखन व सम्पादन के साथ ही आर्य समाज सान्ताक्रूज मुम्बई से प्रकाशित मासिक पत्र ‘परिवर्तन’ एवं आर्य समाज फोर्ट मुम्बई से प्रकाशित ‘आर्य विजय’ का कुछ वर्षो तक सम्पादन भी किया। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य वेद प्रचार है। वेद प्रचार कई प्रकार से किया जा सकता है। वेद सम्मेलन भी वेद प्रचार का एक तरीका है। इसमें वेदों के विद्वान सम्मिलित होते हैं, उपदेशों व प्रवचनों के अतिरिक्त विद्वान किन्हीं 2 विषयों पर परस्पर चर्चा भी करते हैं जिनसे उन्हें व श्रोताओं को लाभ होता है। यदि किसी वेद सेवक विद्वान का सम्मान भी किया जाये तो इससे भी वेद प्रचार को प्रोत्साहन मिलता है। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सोमदेवजी ने ‘वैदिक मिशन मुम्बई’ की स्थापना की जिसके अन्तर्गत एक वेद सम्मेलन एवं एक विद्वान का सम्मान प्रतिवर्ष किया जाता है। डा. सोमदेव शा़स्त्री ने वेद प्रचार कार्य को सुस्थिर रखने के लिए कई अन्य संस्थाओं का गठन भी किया है जिसमें ‘आर्य पुरोहित सभा मुम्बई’ एवं ‘आर्य भजनोपदेशक परिषद्’ सम्मिलित हैं।
डा. सोमदेव जी ने अपने जीवन में जो धन अर्जित किया उसका एक बड़ा भाग विवेकपूर्वक दान दिया जिससे आर्य जगत एवं आर्य विद्वान लाभान्वित हुए हैं। अन्य विद्वानों के लिए भी यह अनुकरणीय एवं प्रेरणादायक है। आपने अपने गुरू महामहोपाध्याय पं. युधिष्ठिर मीमांसक की स्मृति को अक्षुण बनाने के लिए 1 लाख रूपये का दान देकर एक स्थिर निधि स्थापित की जिससे प्रति वर्ष एक वैदिक विद्वान को ग्यारह हजार रूपयों के नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। आपके द्वारा गुरूकुल आमसेना को दिए गये 51 हजार रूपयों के दान के ब्याज से वहां के एक छात्र ब्रह्मचारी को छात्रवृत्ति दी जाती है। पं. लेखरामजी के शहीद होने पर उनकी धर्मपत्नी माता लक्ष्मीदेवी ने आर्य प्रतिनिधि सभा से प्राप्त प्रोविडेंट फण्ड की समस्त धनराशि को गुरूकुल कांगड़ी के छात्र पं. बुद्धदेव विद्यालंकार को छात्रवृत्ति के रूप में समर्पित कर दिया था। यह ब्रह्मचारी बुद्धदेव विद्यालंकार बने जो संन्यास के बाद स्वामी समर्पणानन्द के नाम से विख्यात हुए। यह पं. बुद्धदेव विद्यालंकार बहुप्रतिभाशाली थे और अपने समय के आर्य समाज के एक स्तम्भ थे। इनका स्थापित किया हुआ गुरूकुल प्रभाताश्रम, मेरठ आज भी आर्य समाज को संस्कृतज्ञ विद्वान प्रदान करता आ रहा है। किसी निर्धन पात्र विद्यार्थी को छात्रवृत्ति दी जाती है तो इससे छात्र को अध्ययन में लाभ होता है। अतः छात्रवृत्ति देने के पीछे डा. सोमदेवजी की आर्य समाज के कल्याण, उत्थान व उन्नति की जो भावनायें छिपी हैं, उसे हम और पाठक अनुभव कर सकते हैं। बाद में इसी प्रकार आपने अपनी सेवा निवृत्ति के अवसर पर आर्य भजनोपदेशक परिषद् को 50 हजार रूपयों का दान दिया। आपको दक्षिणा में जो धनराशि मिलती है उसका उपयोग भी आप अपने ननोरा-मन्दसौर, मध्यप्रदेश स्थित निवास पर वेद पारायण यज्ञ कराने में करते हैं जिसमें देश के प्रमुख विद्वान, संन्यासी एवं भजनोपदेशक सम्मिलित होते हैं और जिससे शास्त्रीजी का यश एवं कीर्ति चारों दिशाओं में सुगन्ध की भांति फैल गई है। इस वर्ष अप्रैल, 2015 में आपने ननोरा–मन्दसौर में वेदपारायण यज्ञ की रजत जयन्ती मनाई। इसमें देशभर से भारी संख्या में विद्वान व धर्मप्रेमी श्रद्धालुजन सम्मिलित हुए। बताया गया है कि कार्यक्रम भव्य, अपूर्व व पूर्णतः सफल था। यह भी बता दें कि आपके प्रयासों से सारा गांव आर्यसमाजी बन गया है। वहां न कोई नशा करता है, न शराब पीता है, न कोई मांस खाता है, न सिगरेट–बीड़ी पीता है। अन्य सभी व्यसनों से भी गांव के लोग दूर हैं। आपने बड़ी संख्या में वेदपारायण यज्ञ तो कराये ंही हैं, दो वृष्टि–यज्ञ भी आप सम्पन्न करा चुकें हैं।
निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि डा. सोमदेव शास्त्री आर्य जगत के एक मिशनरी विद्वान, प्रचारक, सेवक, पुरोहित, दानी, आदर्श गृहस्थी, लेखक, सम्पादक एवं ईश्वर-वेद-दयानन्द-भक्त हैं। उनका जीवन अनुकरणीय है। ईश्वर उन्हें व उनकी धर्मपत्नी श्रीमति सुदक्षिणाजी को दीर्घायु प्रदान करें, वह सुखी व समृद्ध हों जिससे यह देश व आर्य समाज की पूर्व से अधिक सेवा कर सकें।
–मनमोहन कुमार आर्य
मनमोहन जी , डाक्टर सोम्वेद शाश्तरी जी के बारे में जान कर अच्छा लगा . अन्ध्विस्वासों और गलत धारणाओं को दरुस्त करना एक महान कारज है . कभी कभी मैं पीस टीवी को भी देखा करता था जिस में जाकर नाएक इस्लाम का परचार करता है और बहुत से हिन्दू इस्लाम धारण भी कर रहे हैं . लेकिन जो बातें वोह वेदों के बारे में कहता है वोह हमारे धर्म गुरु जानते भी नहीं . वोह कहता है हिन्दू धर्म में मूर्ती पूजा है ही नहीं और वोह वेदों से कोटेशन ढून्ढ कर बताता था . यह ठीक है कि उस का मकसद सिर्फ इस्लाम का परचार ही है लेकिन उस के उतर लोगों से दिए नहीं जाते . जो आर्य समाज कहता है ,वोह ही जाकर नाएक कहता है बेछक उस का मकसद सिर्फ इस्लाम का परचार ही है .
धन्यवाद श्री गुरमेल सिंह जी। इस्लाम के लोग हिन्दुओं की कमियां तो बताते हैं परन्तु अपनी उससे भी अधिक कमियों को नहीं देखते। स्वामी दयानंद ने अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश का एक पूरा अध्याय ही इस्लाम व उसकी मान्यताओं पर लिखा है और उंसकी युक्ति व तर्क विरुद्ध बातों का खंडन किया है। आज तक उनका कोई उत्तर नहीं दे सका। हिन्दू भोले भाले हैं और अपने धर्म गुरुओं के ज्ञान व स्वार्थ का शिकार हो रहे हैं। आर्यसमाज हिन्दुओं व सारी मानवता का सच्चा मित्र है परन्तु सभी ने अपने बुद्धि पर ताला लगा कर एक प्रकार से उनके सत्य सिधान्तो का बहिस्कार कर रखा है। सत्य के ग्रहण से उन्नति होती है और असत्य से हानि। हानि निरंतर हो रही है परन्तु किसी को दिखाई नहीं देती। ईश्वर की जब कृपा होगी तो यह अज्ञानी अपना आचरण ठीक करेंगे। आपका धन्यवाद।